शेवा कोलीवाड़ा (pic credit; social media)
Sheva Koliwada: जेएनपीए बंदरगाह के लिए विस्थापित हुए शेवा कोलीवाड़ा के ग्रामीणों को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है। करीब 40 साल से जमीन और पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे इन परिवारों को अब केंद्र सरकार से साफ जवाब मिल गया है कि जमीन नहीं दी जाएगी। इससे ग्रामीणों की पीड़ा और गुस्सा और बढ़ गया है।
शेवा कोलीवाड़ा गांव को साल 1985 में बंदरगाह निर्माण के लिए विस्थापित किया गया था। उस समय से अब तक 256 परिवार पुनर्वास की आस में भटक रहे हैं। जेएनपीए प्रशासन ने गांव के पुनर्वास के लिए 10.6 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इसके बदले ग्रामीणों को क्लस्टर यानी समूह विकास योजना का विकल्प दिया जा रहा है, जिस पर लोगों ने नाराजगी जताई है।
ग्रामीणों का कहना है कि वे पिछले कई दशकों से खतरनाक और जर्जर घरों में रहने को मजबूर हैं। साल 1992 से यह पूरा इलाका भूस्खलन से प्रभावित है। ऐसे में लोगों के जीवन पर हर पल खतरा मंडरा रहा है। विस्थापन के बाद चार पीढ़ियां अब तक असुरक्षित झोपड़ों और अस्थायी घरों में रह रही हैं।
शेवा कोलीवाड़ा की महिलाओं ने हाल ही में पुनर्वास की मांग को लेकर चेतावनी दी थी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे 15 अगस्त को चौथी बार जेएनपीए जहाजों को रोक देंगी। इसी बीच, आक्रोशित ग्रामीणों ने फुंडे और जेएनपीए श्रमिक बस्ती के बीच आरक्षित 10.6 हेक्टेयर भूखंड पर भूमि पूजन कर दिया। उनका कहना है कि पहले उन्हें पुनर्वास की जमीन दी जाए, उसके बाद ही बंदरगाह का विस्तार संभव है।
ग्रामीणों की नाराजगी सिर्फ आश्रय तक सीमित नहीं है। विस्थापन के बाद से उनका रोजगार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मत्स्य व्यवसाय और अन्य कामकाज छिन जाने से परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। अब गांव के पुनर्वास सहित रोजगार और बुनियादी सुविधाओं के कई सवाल अनसुलझे हैं। फिलहाल जेएनपीए ने पुनर्वास के लिए 10.50 हेक्टेयर विकसित भूमि देने पर सहमति जताई है, लेकिन केंद्र से जमीन देने से इनकार के बाद पूरा मामला फिर से अधर में लटक गया है। ग्रामीणों का कहना है कि अब वे संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ेंगे।