झुग्गी-झोपड़ी (सांकेतिक तस्वीर)
Maharashtra News: मीरा-भाईंदर महानगरपालिका (MBMC) क्षेत्र की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले हज़ारों लोग आज भी सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि अब तक इन बस्तियों को न तो औपचारिक रूप से झुग्गी घोषित किया गया है और न ही संपूर्ण सर्वेक्षण की प्रक्रिया पूरी हो पाई है। मीरा-भाईंदर की झुग्गी बस्तियों का अधूरा सर्वेक्षण और प्रशासनिक ढिलाई हज़ारों गरीब नागरिकों के लिए बड़ी बाधा बन गई है। जब तक झुग्गी-झोपड़ियों को आधिकारिक मान्यता नहीं दी जाती और पुनर्वास की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक यह आबादी विकास योजनाओं से वंचित रहकर बुनियादी सुविधाओं से जूझती रहेगी।
मीरा-भाईंदर मनपा क्षेत्र में फिलहाल 46 झुग्गी बस्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से 11 नमक विभाग की ज़मीन पर, 14 महाराष्ट्र सरकार की भूमि पर और 21 निजी भूखंडों पर स्थित हैं। इन झुग्गियों में लगभग 27,507 घरों में करीब 1.31 लाख नागरिक रहते हैं। झुग्गी बस्ती घोषित न होने की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना, रमाई आवास योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
झुग्गी बस्तियों की स्थिति और भी जटिल इसलिए है क्योंकि इनमें से कई बस्तियाँ सीआरजेड-1, 2 और 3 ज़ोन, मैंग्रोव बफर क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र तथा राज्य परिवहन निगम की ज़मीन पर बसी हुई हैं। ऐसे में इनके पुनर्वास के लिए अलग-अलग विभागों से मंजूरी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, प्रशासन द्वारा अब तक केवल 17,262 घरों का ही सर्वेक्षण कराया जा सका है। पात्र नागरिकों की पहचान के लिए 1 जनवरी 2000 से पूर्व के मतदाता सूची में नाम, राशन कार्ड, बैंक पासबुक, स्कूल प्रमाणपत्र, जन्म/मृत्यु प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ों के आधार पर सर्वेक्षण करना अनिवार्य है, परंतु यह प्रक्रिया अधूरी पड़ी हुई है।
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सर्वेक्षण और झुग्गी मान्यता में देरी के कारण न तो मलिन बस्ती पुनर्वास योजना, और न ही जिला विकास योजना एवं दलित बस्ती विकास योजना का लाभ यहाँ तक पहुँच पाया है। इन परिस्थितियों में झुग्गीवासियों को आज भी पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवाएँ और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है। उचित पुनर्वास न होने से उनका जीवन असुरक्षित और असुविधाजनक बना हुआ है।