अजित पवार गुट में शामिल नए चेहरे असक्रिय। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
जलगाव: जलगांव जिले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के 2 पूर्व मंत्री और 2 पूर्व विधायक अजित पवार गुट में शामिल हुए और यह प्रक्रिया लगभग एक महीने से जारी है। लेकिन नए शामिल नेताओं में से केवल गुलाबराव देवकर ही पार्टी के अंदर सक्रियता दिखा रहे हैं। बाकी प्रभावशाली नेता अजित पवार गुट में पूरी तरह नहीं घुले हैं और पार्टी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति भी नगण्य है।
हाल ही में सहकारिता मंत्री बाबासाहब पाटिल के जलगांव दौरे के दौरान कई बड़े नेता अनुपस्थित रहे। इससे पार्टी के अंदर असंतोष और दूरी की स्थिति स्पष्ट हुई है, जो गुट की मजबूती के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
जलगांव जिले के 15 तालुकों में महायुती का दबदबा मजबूत होने के बावजूद, भाजपा और शिवसेना (विशेषकर एकनाथ शिंदे गुट) की तुलना में अजित पवार गुट की स्थिति कमजोर बनी हुई है। जिले में केवल अमळनेर तालुका में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक विधायक है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के मंत्रिमंडल में अनिल पाटिल को मदत और पुनर्वास विभाग का मंत्रालय मिला था, जिससे गुट की पकड़ मजबूत हुई थी। लेकिन देवेंद्र फडणवीस के मंत्रिमंडल में अनिल पाटिल को उपेक्षित किए जाने से स्थिति प्रभावित हुई।
स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनावों को लेकर पार्टी की ताकत बढ़ाने के लिए अजित पवार गुट ने रणनीति बनाई है। इसी क्रम में शरद पवार गुट के दिग्गज नेता गुलाबराव देवकर, डॉ. सतीश पाटिल, पूर्व विधायक कैलास पाटिल और दिलीप सोनवणे को गुट में शामिल किया गया है। इससे महायुती में अजित पवार गुट का प्रभाव बढ़ा है और माना जा रहा है कि आगामी चुनावों में यह गुट मजबूत दावेदार साबित होगा।
फिर भी अजित पवार गुट के अंदर संतुलन बनाने और सभी बड़े नेताओं को एकजुट करने की चुनौती बनी हुई है। कई प्रभावशाली नेता अभी भी पार्टी के संगठनात्मक कार्यों और राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बनाए हुए हैं, जिससे गुट की पूरी ताकत दिखाना मुश्किल हो रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि जलगांव जिले की महायुती में यह स्थिति आगामी चुनावों में अहम भूमिका निभाएगी। अगर अजित पवार गुट सभी बड़े नेताओं को साथ लेकर चल पाया, तो वह जिले में अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है। वहीं, अगर दूरी और असमंजस बना रहा, तो इसका नुकसान महायुती को भुगतना पड़ेगा। इस समय जलगांव की राजनीति की नजरें इस गुट के अंदर के समीकरणों पर टिकी हैं। आगामी महीनों में पार्टी के बड़े नेताओं की सक्रियता और एकजुटता ही तय करेगी कि वे राजनीतिक मैदान में कितने मजबूत साबित होंगे।