आदिवासी महिलाएं (सौ. सोशल मीडिया )
Maika Ghar In Gondia: गोंदिया जिले में गर्भवती और प्रसव वाली महिलाओं को सुरक्षित प्रसव और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई ‘मायका घर’ योजना गोंदिया जिले में विफल होती दिख रही है। करोड़ों रुपये की लागत से बने 13 ‘मायका घर’ खाली पड़े हैं, और जन जागरूकता की कमी के कारण आदिवासी क्षेत्रों की गर्भवती महिलाएं इन सुविधाओं का लाभ नहीं ले रही हैं।
गोंदिया जिले के अधिकांश आदिवासी गांव दुर्गम और दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं। इन गांवों में पक्की सड़कें नहीं हैं, और परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण गर्भवती महिलाओं के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। इसके अलावा, टेलीफोन और मोबाइल नेटवर्क भी अक्सर बाधित रहते हैं, जिससे आपातकालीन स्थिति में मदद नहीं मिल पाती। उचित चिकित्सा देखभाल के अभाव में, आदिवासी गांवों में शिशु और मातृ मृत्यु दर अधिक है।
इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए, 2010-11 से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत हर आदिवासी गांव में महिलाओं के लिए ‘मायका घर’ योजना शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले और बाद में सुरक्षित और स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण प्रदान करना था। उन्हें प्रसव से दो दिन पहले इन घरों में भर्ती कराया जाता है, जहां डॉक्टरों द्वारा उनकी नियमित जांच की जाती है, ताकि सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित किया जा सके।
जिले में कुल 13 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ‘मायका घर’ बनाए गए हैं। इनमें देवरी तहसील में मुल्ला, घोनाडी, ककोडी; अर्जुनी मोरगांव तहसील में केशोरी, गोठनगांव, कोरंभीटोला, महागांव, चान्ना बाक्टी; सड़क अर्जुनी में शेंडा, पांढरी; और सालेकसा में कावराबांध, दरेकसा और बीजेपार शामिल हैं।
हालांकि, इन सभी मायका घरों में ताले लगे हुए हैं क्योंकि एक भी गर्भवती महिला इनका उपयोग नहीं कर रही है। जिला परिषद स्वास्थ्य विभाग के एक प्रवक्ता के अनुसार, यह योजना उस समय शुरू की गई थी जब प्रसूति के लिए पर्याप्त परिवहन सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, ताकि माताओं को अस्पताल में ही घर जैसा माहौल मिल सके। लेकिन, जागरूकता की कमी और शायद कुछ सांस्कृतिक कारणों से, आदिवासी महिलाएं इन घरों से दूर रह रही हैं।
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यह स्थिति सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद, अगर लाभार्थियों तक योजना का लाभ नहीं पहुंच रहा है, तो इसका मतलब है कि योजना के प्रचार-प्रसार और समुदाय के साथ जुड़ने की प्रक्रिया में कहीं कमी है। इस योजना को सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग को आदिवासी समुदायों के बीच जाकर उन्हें इसके लाभों के बारे में शिक्षित करना होगा।