गड़चिरोली में लौटे जंगली हाथी। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
गड़चिरोली: महाराष्ट्र का गड़चिरोली जिला, जो अब तक अपनी बाघों की गिनती और नक्सली गतिविधियों के कारण चर्चा में रहता है, अब एक और जंगली संकट से जूझ रहा है। ओडिशा से छत्तीसगढ़ होते हुए आए दो जंगली हाथी शुक्रवार रात को चंद्रपुर जिले के सावली वनक्षेत्र में फिर से देखे गए। इस खबर ने क्षेत्र के गांवों में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है।
इन हाथियों को विहिरगांव, रामनगर, सायखेड़ा और असोला-मेंढा जलाशय के समीप घूमते हुए देखा गया। रात के सन्नाटे में जंगल के भीतर से आती झाड़ियों की सरसराहट, टूटी हुई शाखाएं और भारी कदमों की आहट ने गांव वालों की नींद उड़ा दी।
स्थानीय मछुआरों ने बताया, “हम झील के किनारे मछली पकड़ रहे थे तभी विशालकाय काया सामने आ गई। पहले तो लगा कोई बड़ा जानवर होगा… लेकिन जब देखा कि वो हाथी था, तो दिल ही कांप गया।” कुछ लोगों ने डरते-डरते मोबाइल कैमरे से फोटो और वीडियो लिए और तुरंत वन विभाग को सूचना दी। शनिवार को भी उन्हें सावली क्षेत्र में देखा गया।
वन विभाग ने इन हाथियों पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी है। वन अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि यदि उन्हें कोई छेड़छाड़ या खतरा महसूस हुआ, तो वे आक्रामक हो सकते हैं और जान-माल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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किसी को भी रात में बाहर न निकलने की सख़्त हिदायत
हाथियों के पास जाने, वीडियो बनाने या शोर मचाने से परहेज़ करें
खतरे की स्थिति में तत्काल वन विभाग को सूचित करें
गौरतलब है कि यही हाथी मई माह में ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व के कोर और बफर ज़ोन तक पहुंच चुके थे, जिससे वहां के पर्यटन और सुरक्षा व्यवस्थाओं पर बड़ा असर पड़ा था। पर्यटन के आखिरी दौर में, हाथियों के आगमन से सफारी रद्द करने की नौबत आ गई थी। अब जब उन्होंने फिर से उसी मार्ग से वापसी की है, तो यह साफ है कि यह झुंड इस क्षेत्र को अपना नया ठिकाना बना रहा है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों के इस तरह बार-बार लौटना संकेत है कि जंगलों में उनके प्राकृतिक आवास और भोजन की कमी हो रही है, जिससे वे मानव बस्तियों की ओर खिंचे चले आ रहे हैं। ऐसे में यह केवल वन विभाग के लिए नहीं, पूरे पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है। शेरों की सरजमीं पर अब हाथियों की दहाड़ सुनाई दे रही है। एक ओर जहां वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह दृश्य रोमांचक हो सकता है, वहीं स्थानीय लोगों के लिए यह खतरे की घंटी है। अब समय है कि वन्यजीव और मानव के बीच संतुलन साधने के लिए ठोस रणनीति बनाई जाए।