गौण खनिज तस्करों पर अपराध दर्ज (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Yavatmal News: मुरुम जैसे गौण खनिज के अवैध उत्खनन व परिवहन के मामले में शिरपूर पुलिस थाने में 3 आरोपियों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है। यह कार्रवाई ग्राम राजस्व अधिकारी द्वारा 17 जुलाई को मोहदा में की गई थी, मगर लगभग एक महीने बाद एफआईआर दर्ज होने से राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ग्राम राजस्व अधिकारी अमोल गाठे की तक्रार पर संजय अशोक पारखी (मोहदा), जयकुमार गौरकार (बोरगांव, त. वणी) और नितीन मारोती सिडाम (नारंडा, त. कोरपना, जि. चंद्रपुर) के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण, जमीन राजस्व तथा भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ है।
16 जुलाई को ग्राम विकास अधिकारी अमोल गाठे व कोतवाल बंडू तिरणकर ने मोहदा-केशवनगर मार्ग पर 3 ट्रैक्टर पकड़े थे. पूछताछ में चालकों के पास न तो रॉयल्टी की रसीद थी और न ही परिवहन परमिट,जांच में यह साफ हुआ कि मुरुम अवैध रूप से उत्खनन व परिवहन किया जा रहा है। पंचनामा कर तीन ट्रैक्टर क्रमांक MH 29 BP 5593, MH 29 CJ 3721, MH 29 BP 8830 और बिना नंबर की तीन ट्रॉली जब्त कर तहसील कार्यालय वणी में जमा की गईं।
17 जुलाई को ही गौण खनिज की जब्ती का पंचनामा कर राजस्व एवं वन विभाग ने आदेश दिए कि दोषियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाए। लेकिन सवाल यह है कि पुलिस थाने में तक्रार दर्ज कराने में अधिकारियों को पूरे एक महीने का वक्त क्यों लगा? स्थानीय लोगों का आरोप है कि मोहदा के जिस खदान पट्टा धारक ने 3 ब्रास मुरुम बिना रॉयल्टी बेचा, उसे शिकायत से बाहर रखा गया है। केवल ट्रैक्टर मालिकों पर कार्रवाई हुई, जबकि असली स्रोत पर हाथ डालने से प्रशासन पीछे क्यों हटा यह बड़ा सवाल है।
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शासन आदेश के अनुसार ऐसे मामलों में महाराष्ट्र जमीन महसूल संहिता, 1966 की धारा 48 (7), 48 (8), भारतीय न्याय संहिता 2023 की धाराएं 303(2), 310(2), 132, 351(2), 118(1), 115(2), 332(C), 3(5), पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1966 की धारा 9 व 15, खनन एवं खनिज अधिनियम 1958 की धारा 3, 4, 21 और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम की धारा 3 व 7 के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी। लेकिन इस ममले मे खनन अधिनियम व संपत्ति नुकसान अधिनियम की कोई धारा शामिल नहीं की।
प्रशासनिक सुस्ती, पुलिस की नरमी और खदान पट्टा धारकों को बचाने की प्रवृत्ति ने अवैध खनन माफिया को खुला संरक्षण मिलने की शंका और गहरा दी है। सरकार की सब्सिडी व टैक्स छूट लेकर खरीदे गए ट्रैक्टर का खेती की बजाय धड़ल्ले से रेत-मुरुम की तस्करी में उपयोग हो रहा हैं। तहसील में यह दृश्य आम हो चुका है। परिवहन विभाग के पास ऐसे अनेक मामले होने के बावजूद अब तक एक भी ट्रैक्टर का परवाना रद्द नहीं किया गया है।