संघ सिंदेवाही शाखा का विजयादशमी उत्सव (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Chandrapur District: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सिंदेवाही शहर शाखा द्वारा विजयादशमी के अवसर पर रविवार 12 अक्टूबर को आयोजित पद संचलन और उत्सव कार्यक्रम से सोमेश्वर मंदिर परिसर में उत्साहपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ। इस अवसर पर ब्रह्मपुरी जिला सहकार्यवाह आल्हादजी शिनखेड़े ने आह्वान किया कि ‘संघ शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को अधिक गति के साथ आगे बढ़ाना है।’ उत्सव के आरंभ मे सिंदेवाही शहर से घोष वाद्य (बैंड) के साथ स्वयंसेवकों ने पद संचलन निकाला। इसके उपरांत सोमेश्वर मंदिर परिसर में आयोजित मुख्य कार्यक्रम के मंच पर प्रमुख अतिथि के रूप में सिंदेवाही-लोनवाही नगर पंचायत के नगराध्यक्ष भास्कर नन्नावार उपस्थित थे।
प्रमुख वक्ता के रूप में ब्रह्मपुरी जिला सहकार्यवाह आल्हादजी शिनखेड़े मौजूद थे, साथ ही सहसंचालक मनोहरराव पर्वते और मंडल कार्यवाहक चौके भी मंच पर उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत नगराध्यक्ष भास्कर नन्नावार के कर कमलो द्वारा शस्त्र पूजन की विधि संपन्न हुई। तत्पश्चात ध्वज पूजन और संघ की पारंपरिक प्रार्थना ली गई। स्वयंसेवकों ने विभिन्न शारीरिक आसन और प्रात्यक्षिक प्रदर्शित किए। इसके उपरांत, सांघिक गीत, बौद्धिक कार्यक्रम और अमृत वचन गिरीषजी जोशी ने प्रस्तुत किया, सुरेशजी ठिकरे ने ‘चरेवेती, चरेवेती, यही तो मंत्र है अपना’ यह वैयक्तिक प्रेरणा गीत गाया। मनोहरराव पर्वते ने प्रास्ताविक भाषण, अतिथियों का परिचय और अंत में आभार प्रदर्शन किया।
प्रमुख अतिथि भास्कर नन्नावार ने अपने संबोधन में संघ के राष्ट्र हित के कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने हिंदू धर्म के लोगों से अपील की कि वे अपने धर्म की रक्षा और राष्ट्र हित के कार्यों में शामिल होने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अवश्य जुड़ें और अपने धर्म को सुरक्षित व संरक्षित करने के लिए एकजुट होने का आव्हान किया।
शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को गति देने की आवश्यकता – आल्हादजी शिनखेड़े
प्रमुख वक्ता आल्हादजी शिनखेड़े ने अपने संबोधन मे बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १९२५ में नागपुर में हुई थी और इस वर्ष (२०२५) संघ के १०० वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने संघ में निर्धारित छह उत्सवों की रचना पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही, सरसंघचालक डॉ। हेडगेवार के जीवन पर बोलते हुए कहा कि एमबीबीएस की डिग्री लेने के बावजूद उन्होंने दवाखाना न खोलते हुए, हिंदू धर्म की नब्ज को पहचानकर राष्ट्र कार्य किया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि विजयादशमी हिंदू समाज के इतिहास और विजय का उत्सव है, और उन्होंने विजय की परंपरा पर कई उदाहरण भी दिए।
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उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश पर आए अनेक संकटों में संघ का स्वयंसेवक कैसे तुरंत सेवा के लिए पहुँच जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ में व्यक्ति पूजा को नहीं, बल्कि ध्वज पूजा को महत्व दिया जाता है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि संघ द्वारा एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। उन्होंने हिंदू धर्म के लोगों के मन में अन्य लोगों द्वारा कुछ ‘नैरेटिव’ (भ्रांतियाँ/विचार) फैलाए जाने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ‘भारत विश्व गुरु बनने की राह पर है’ और कोरोना काल में स्वयंसेवकों द्वारा किए गए कार्यों को याद दिलाया। साथ ही, उन्होंने आयुर्वेद, योग, स्वदेशी अपनाने, प्लास्टिक बंदी के महत्व और ऋतुचक्र, पर्यावरण बचाने की जरूरत जैसे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी मार्गदर्शन किया।
सिंदेवाही शाखा का विजयादशमी उत्सव स्वयंसेवकों को राष्ट्र निर्माण के कार्य में दोगुने उत्साह से जुटने की प्रेरणा देकर प्रमुख वक्ताओं के वैचारिक मंथन के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम सफल बनाने में सुरेश ठिकरे, तन्मय शेट्टे, गिरीश जोशी, मनोहर पर्वते, अजय सुर्यवंशी, प्रदिप चावरे, राहुल कावळे, धनजंय बंसोळ, तुकाराम गायकवाळ, गुलाब बुरुले, नागराज गेडाम, कमलाकर सिध्दमशैट्टिवार, आदि ने कड़ी मेहनत की।