वन्यजीवों ने 9,049 किसानों की फसल रौंदी। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
भंडारा: जिले में खेती करना अब महज एक कृषि कार्य नहीं, बल्कि एक जंग बन चुका है। यह जंग जंगली जानवरों से अपनी मेहनत बचाने की है। अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक, एक साल में भंडारा जिले के 9,049 किसानों की फसलें वन्यजीवों ने रौंद डालीं। जानवरों की इस तबाही से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। हालांकि, वन विभाग को 8 करोड़ 32 लाख रुपए से ज्यादा की राशि बतौर मुआवजा किसानों को चुकाई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मुआवजा किसानों के आंसू पोंछने के लिए काफी है?
जिले का जंगल चारों ओर से बाघ अभयारण्यों से घिरा है। पूर्व में नवेगांव-नागझिरा, उत्तर में पेंच, पश्चिम में उमरेड-करहांडला-पवनी और दक्षिण में ताडोबा बाघ परियोजनाएं हैं। ऐसे में यहां के किसान हमेशा खतरे के साए में खेती करते हैं। वन्यजीव, विशेषकर बाघ, तेंदुए, जंगली सूअर, नीलगाय और हिरण जैसे जानवर रात के अंधेरे में खेतों में घुसते हैं और महीनों की मेहनत चुटकियों में बर्बाद कर जाते हैं।
वन विभाग की नीति के अनुसार प्रति हेक्टेयर 2 हजार रुपये या अधिकतम 20,000 रुपए का मुआवजा दिया जाता है, लेकिन क्या यह रकम उस किसान के लिए पर्याप्त है, जिसने खाद, बीज, कीटनाशक, मजदूरी और पानी पर लाखों रुपए खर्च किए हों? क्या यह मुआवजा उसकी मेहनत, उम्मीद और पेट की कीमत चुका सकता है? बिल्कुल नहीं। यह सिर्फ मुआवजा नहीं, बल्कि किसानों की पीड़ा पर लगाया गया मरहम है जो जलन को और बढ़ाता है। वन विभाग के पास करोड़ों का बजट होता है, पर जब बात किसानों की होती है, तो जेब टटोलनी पड़ती है।
नतीजा—किसान नाखुश रहते हैं, और उनकी नाराजगी जंगलों से सटे क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष को जन्म दे सकती है। हर साल किसान अपनी जान जोखिम में डालते हुए खेती करता है। उसे डर है कि कहीं अगली सुबह उसकी फसल खेत में न मिलकर जानवरों के पेट में न चली जाएं, पर सरकार और वन विभाग की नीतियां इस संकट को गंभीरता से नहीं ले रहीं।
क्या, बाघों की सुरक्षा ही प्राथमिकता है और किसानों की कोई कीमत नहीं? सरकार को चाहिए कि मुआवजा नीति की समीक्षा करे। मुआवजा न केवल बाजार दरों के अनुसार दिया जाए, बल्कि वन्यजीवों से निपटने के लिए स्थायी समाधान निकाला जाए। खेतों के चारों ओर सौर-ऊर्जा चालित बाड़ लगाई जाए, निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हो, और ग्रामीणों को वन्यजीव मित्र बना कर उन्हें प्रशिक्षण व उपकरण मुहैया कराए जाएं।
मई 2025 में 15 तारीख तक 97 किसानों के खेतों में जंगली जानवर घुसकर उनकी फसल चौपट कर चुके हैं। इन किसानों को मुआवजे के रूप में 8 लाख 52 हजार 409 रुपये दिए जाने का प्रावधान किया गया है। आज जरूरत है एक सख्त और दूरदर्शी नीति की, जो न केवल किसानों की रक्षा करे बल्कि वन्यजीवों और मानव के बीच संतुलन भी बनाए रखे। वरना वह दिन दूर नहीं जब जिले में खेती छोड़कर किसान पलायन को मजबूर होंगे, और जंगलों की सीमा पर संघर्ष की आग और भड़क उठेगी।