
भंडारा जिले में धान की फसलों को भारी नुकसान
Lakhani Farmers: दिवाली के बाद ठंडी हवाओं की आहट और रबी सीजन की तैयारी का इंतजार कर रहे किसानों की उम्मीदों पर इस बार लौटती हुई बारिश ने पानी फेर दिया है। लगातार हो रही बरसात से लाखनी तहसील सहित जिले के कई हिस्सों में धान की फसलें पूरी तरह पानी में डूब गई हैं। मेहनत से तैयार की गई फसल हाथ से निकलते देख किसानों के चेहरों पर मायूसी और हताशा छा गई है।
पिछले कुछ दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश के कारण खेतों में कटाई के लिए तैयार धान की फसलें गिर चुकी हैं। खेतों में जलभराव से धान की बालियों में सड़न लग रही है और फसल की गुणवत्ता घट रही है। इससे किसानों को दोहरी आर्थिक मार झेलनी पड़ रही है। रबी सीजन की तैयारी करने वाले किसानों के सामने अब नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। खेतों में अत्यधिक नमी और ठंड की कमी के कारण बुवाई के लिए अनुकूल वातावरण नहीं बन पा रहा है।
दलहनी फसलों के लिए ठंडा और हल्का गर्म वातावरण आवश्यक होता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब ठंड का काल लगातार घट रहा है। हरभरा, मूंग, उड़द, गेहूं, सरसों और जवस जैसी फसलें तापमान की अस्थिरता से प्रभावित हो रही हैं। लगातार बारिश और नमी भरा वातावरण इन फसलों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है, जिससे उत्पादन में कमी और लागत में बढ़ोतरी की दोहरी समस्या सामने आ रही है।
इस वर्ष खरीफ सीजन की शुरुआत में सूखे जैसी स्थिति थी, लेकिन अब अक्टूबर के अंत में आई लगातार बारिश ने किसानों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। खेतों में जलभराव होने से अब जिले में ‘भीगे सूखे’ जैसी स्थिति बन गई है। धान की फसलें डूब जाने से उत्पादन में भारी कमी की संभावना जताई जा रही है। किसानों के सामने कर्ज चुकाने, बीज खरीदने और रबी सीजन की तैयारी जैसी कई चुनौतियाँ एक साथ खड़ी हो गई हैं।
ये भी पढ़े: अपने वादे पूरे करो, वरना…फडणवीस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान, कर्जमाफी के लिए मचा बवाल!
लाखनी तहसील के अधिकांश किसान धान उत्पादन पर निर्भर हैं। धान की कटाई के बाद वे हरभरा, गेहूं और अन्य दलहनी फसलें बोते हैं। लेकिन मौजूदा मौसम ने पूरे कृषि चक्र को बाधित कर दिया है। किसानों का कहना है कि फसल बर्बाद होने से आमदनी का स्रोत खत्म हो गया है और अब अगले सीजन के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने शासन से मांग की है कि नुकसानग्रस्त किसानों को तत्काल आर्थिक सहायता, फसल बीमा योजना के अंतर्गत मुआवजा और कर्जमाफी जैसी राहत दी जाए।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बदलते मौसम का यह चक्र किसानों के लिए हर सीजन में नई परीक्षा लेकर आता है। ऐसे में मौसम अनुरूप खेती पद्धति, स्थायी जलसंधारण योजना और शासन की त्वरित सहायता को एक साथ लाना जरूरी है। अन्यथा, यह “भीगा सूखा” न केवल किसानों की आजीविका बल्कि संपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल सकता है।






