गौरी पूजन से घरों में श्रद्धा का संगम (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Bhandara News: भारत विविधतापूर्ण परंपराओं और उत्सवों की भूमि है। यहाँ प्रत्येक पर्व का संबंध केवल धार्मिक आस्था से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है ज्येष्ठ गौरी पूजा, जिसे विशेषकर महाराष्ट्र, विदर्भ, कर्नाटक और गोवा के कुछ हिस्सों में बड़े उत्साह और श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पूजा 01 सितंबर को आ रही है। इस दिन घर-घर में गौरी माता का आगमन होता है और परिवार विशेषकर महिलाएँ भक्ति, साज-सज्जा और पारंपरिक विधियों से माता का पूजन करती हैं।
गौरी माता को शक्ति, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी है। उन्हें महादेव शिव की अर्धांगिनी और भगवान गणेश की माता पार्वती के रूप में पूजा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन गौरी माता अपने मायके (पृथ्वी लोक) आती हैं और भक्तों के घर-आँगन में सुख-शांति, वैभव और उन्नति का आशीर्वाद देती हैं। महाराष्ट्र में यह पर्व विशेष रूप से लोकप्रिय है। यहाँ मान्यता है कि ज्येष्ठ गौरी का आगमन गणेशोत्सव से पूर्व शुभता का संदेश लाता है। इसे स्त्रियों के लिए विशेष पर्व माना जाता है, क्योंकि यह उनकी पारिवारिक समृद्धि और संतति सुख की कामना से जुड़ा हुआ है।
ज्येष्ठ गौरी पूजा की शुरुआत घर को स्वच्छ करने और आँगन को सजाने से होती है। पूजा वाले दिन घर की स्त्रियाँ सुंदर रंगोली बनाती हैं और आँगन में मंगलकलश स्थापित करती हैं। पारंपरिक रूप से मिट्टी की गौरी माता की मूर्तियाँ या मुखौटे लाए जाते हैं। कुछ परिवारों में ‘हल्दी-कुंकू’ के रूप में भी गौरी माता का प्रतीक स्वरूप पूजित होता है। माता को नवविवाहिता की भांति सजाया जाता है। विशेष रूप से ‘महानैवेद्य’ का महत्व होता है, जिसमें पुरन पोली, मोदक, और अन्य पारंपरिक व्यंजन शामिल होते हैं। इस अवसर पर महिलाएँ एक-दूसरे को आमंत्रित कर ‘हल्दी-कुंकू समारंभ’ करती हैं।
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बताया जाता है कि ज्येष्ठ गौरी पूजा में माता पार्वती अपने मायके आती हैं और कुछ दिनों तक वहीं रहती हैं। इस दौरान वे अपनी बेटियों और बहनों से मिलने जाती हैं। यही कारण है कि स्त्रियाँ इस दिन विशेष रूप से माता से परिवार की रक्षा और संतति सुख की प्रार्थना करती हैं। एक मान्यता यह भी है कि इस दिन माता की पूजा करने से घर में अनाज, धन और वैभव की कमी नहीं होती।
ज्येष्ठ गौरी पूजा भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति, पारिवारिक समृद्धि और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि परंपराएँ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होतीं, बल्कि वे जीवन को अनुशासित, सामंजस्यपूर्ण और सकारात्मक बनाने का साधन होती हैं। 01 सितंबर को जब ज्येष्ठ गौरी का आगमन होगा, तब यह अवसर हर घर में श्रद्धा, भक्ति और आनंद का वातावरण निर्मित करेगा।