गोवर्धन पूजा से जुड़ा है मौनिया नृत्य (सौ.सोशल मीडिया)
Governdhan Puja 2024: दिवाली का त्योहार आने में जहां पर कुछ दिन शेष है वहीं पर इस त्योहार को लेकर तैयारियों का दौर चल रहा है। दिवाली को दीपोत्सव के नाम से जाना जाता है इस दिन देश के हर कोने में दीयों की जगमग रोशनी बिखेरती है। वहीं पर इस मौके पर कई परंपराएं भी प्रचलित है इसके बारे में कम ही लोग जानते है। दिवाली के बाद यहां पर नाचते गाते हुए मौनी नृत्य किया जाता हैं जो हजारों साल से चलने वाली परंपरा में से एक होता है। यह परंपरा खास तौर पर दिवाली के दूसरे दिन यानि गोवर्धन पूजा पर मनाई जाती है।
यहां पर दिवाली के बाद उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश से लगे बुंदेलखंड यानि छतरपुर में मौनिया नृत्य की धूम मची रहती है जिसमें नर्तकों की टोली गांव-गांव में निकलती है। इसे दिवारी नृत्य भी कहते हैं. मौनियां की टीम 12-12 गांव जाकर 12 घंटे तक नृत्य करती है. एक टोली जब इसे शुरू करती है, तो उसे मौन साधना कर 12 अलग-अलग गांव में 12 घंटे तक भ्रमण करती है। उसके बाद इसका विसर्जन करा दिया जाता है। इस परंपरा में लोग मौन रहकर बिना कुछ खाए कई किलोमीटर पैदल नाचते गाते चलते हैं।
इस परंपरा को निभाने के पीछे लोग एक संदेश देते है कि, प्रकृति की रक्षा और गाय बैलों का संरक्षण हो,इसके पहले इसकी टोली में शामिल ग्वाले मौन साधना की शपथ लेते हैं, फिर उनकी टोली निकलती है. इसमें एक नेता होता है, जिसे बरेदी कहते हैं. यह टोलियां जो गीत गाते हुए चलती है, उनमें शृंगार, वैराग्य, नीति, कृष्ण, महाभारत, धर्म और दिवारी गाई जाती है।
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इस परंपरा को मनाने के पीछे पौराणिक कथा प्रचलति है जिसके अनुसार भक्त प्रहलाद के नाती राजा बलि के वंश से इसका संबंध है। बुंदेलखंड के ऐरच में ही भेक्त प्रहलाद के राज का इतिहास बताया जाता है. यहां प्रहलाद के पुत्र विरोचन थे, जिनका पुत्र ही आगे चलकर बलि हुआ. यहां से भगवान विष्णु के बावन अवतार पर भी कथा प्रचलित है। इसके अलावा ही राजा बलि को छलने के लिए ही बावन अवतार लिया गया था. इसके पहले वैरोचन की पत्नी जब सती हो रही थीं, तो उन्हें भगवान ने दर्शन देकर कहा था कि आपके होने वाले पुत्र के सामने हम स्वयं भिक्षा मांगने के लिए आएंगे।
इसे सुनकर सती होने के लिए पहुंची उनकी पत्नी ने दिवारी गायन शुरू कर दिया था. इसमें उन्होंने गाया था— ‘भली भई सो ना जरी अरे वैरोचन के साथ, मेरे सुत के सामने कऊं हरि पसारे हाथ…’, इस गीत के साथ ही मौनिया नृत्य शुरू कर देते हैं, जो पूरे 12 घंटे तक 12 ग्रामों में चलता है। यहां पर मौनी का दशाश्वमेध घाट पर विसर्जन का काम किया जाता है।