भगवान शिव भक्तों पर कृपा बरसाते हैं तो गलत कर्म की सजा भी देते है। महादेव से जुड़ी वैसे तो कई कहानियां है जिसका उल्लेख शिवपुराण में किया गया है। भगवान शिव के तीसरे नेत्र के बारे में कई बातें सुनी है
शादी-ब्याह के लिए की जाती है भगवान शिव की पूजा (सौ. फाइल फोटो)
सावन महीने का दौर चल रहा है इस महीने को महादेव की भक्ति का महीना भी कहते है। भगवान शिव भक्तों पर कृपा बरसाते हैं तो गलत कर्म की सजा भी देते है। महादेव से जुड़ी वैसे तो कई कहानियां है जिसका उल्लेख शिवपुराण में किया गया है। भगवान शिव के तीसरे नेत्र के बारे में कई बातें सुनी है लेकिन आज हम आपको इसकी पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे।
यहां पर भगवान शिव के तीसरे नेत्र को शक्ति और विनाश का प्रतीक नहीं कहा जाता है बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना और ज्ञान का द्वार भी कह सकते है। यह नेत्र तब प्रकट हुआ था जब शिव जी ने अपने भीतर छिपी क्रोध और दिव्य ऊर्जा को बाहर निकाला। अधर्म की अति होने पर भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुलता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव गहरे तप में लीन थे और किसी भी व्याकुलता से अप्रभावित थे। लेकिन उस दौरान कामदेव की चेष्टा से जाग्रत होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र को खोल दिया। फिर शिवजी का तीसरा नेत्र खुलते ही इससे निकली आग इतनी तीव्र थी कि उसने पलभर में ही कामदेव को भस्म कर दिया. यही क्षण इस नेत्र की शक्ति का प्रमाण है।
देवताओं के कहने पर भगवान शिव की तपस्या भंग करने कामदेव कैलाश पर्वत पहुंचे थे।देवता चाहते थे कि शिव पार्वती से विवाह करें, लेकिन कामदेव की भस्मता ने स्थिति उलट दी. इससे देवता भयभीत हो गए और शिव की शरण में आए।
इसके बाद कामदेव की पत्नी रति अपने पति के भस्म हो जाने पर विलाप करने लगीं। इसे देखते हुए उनके आंसुओं और प्रार्थना से शिव का हृदय पिघला और उन्होंने पुनर्जन्म का वर दिया। बताया जाता है कि, शिव का तीसरा नेत्र सिर्फ कामदेव के अंत का माध्यम नहीं, बल्कि चेतना, शक्ति और न्याय का प्रतीक भी बन गया।
कामदेव की घटना के बाद शिव का ध्यान पार्वती की तपस्या और भक्ति पर गया. उन्होंने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया और सृष्टि के संतुलन की नींव रखी। भगवान शिव के तीसरे नेत्र की कहानी कुछ और भी है।