महाराष्ट्र में किसानों की कर्जमाफी का बवाल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: महाराष्ट्र के हजारों किसानों पर कर्ज का बोझ लदा है लेकिन सरकार उनके प्रति संवेदनहीन है. वित्तमंत्री अजीत पवार ने कहा कि उन्होंने कभी कर्ज माफी की बात नहीं की थी. राज्य में उद्योगपतियों के हजारों करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए जाते हैं लेकिन जब किसान कर्ज माफी की मांग करते हैं तो उन्हें बताया जाता है कि सरकार के सामने वित्तीय संकट है और उसकी तिजोरी खाली है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 2014 में कर्ज माफी घोषित की थी किंतु उसमें किसानों के लिए इतनी शर्ते रखी गई थीं कि कर्ज माफी मिलने तक कितने ही किसानों की मौत हो गई।
कागज-पत्र जुटाने, सात-बारह लाने के लिए चक्कर लगाने, बैंकों की नई शर्ते पूरी करने के बाद भी किसानों का हाथ खाली रहा. तब किसानों को कर्ज माफी के लिए ऑनलाइन आवेदन करने को कहा गया था. यह प्रतिक्षा इतनी क्लिष्ट थी कि आधे से अधिक किसान आवेदन भर नहीं पाए. अब तो अजीत पवार ने कर्ज माफी से साफ इनकार कर दिया. उद्योगपतियों का कर्ज माफ करने के लिए कोई शर्त नहीं रहती. 2020 से 2024 तक महाराष्ट्र सरकार ने उद्योगपतियों का 1.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया. उसी अवधि में किसानों की कर्ज माफी केवल 15,500 करोड़ रुपए थी।
किसान आत्महत्या करते रहे लेकिन सरकार उद्योगपतियों पर कर्ज माफी व सुविधाओं की बौछार करती रही. सरकार ने अब एक नया दांव चला है. किसानों को सीधे मदद न देते हुए फसल बीमा की घोषणा की है. यह फसल बीमा निजी बीमा कंपनियों के लिए सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी है. 2024 में बीमा कंपनियों ने किसानों व सरकार के पास से हजारों करोड़ रुपए जमा किए जबकि किसानों को दी गई बीमे की रकम बेहद कम या नगण्य थी. ये कंपनियां अधिक से अधिक फायदा उठाना चाहती हैं. उद्योगपतियों से प्रेम रखनेवाली सरकार खजाना खाली होने की बात करती है और चुनाव के समय किए गए किसान कर्ज माफी के वादे से पलट जाती है।
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दूसरी ओर मंत्रियों के लिए 250 करोड़ रुपए की नई गाड़ियां खरीदी जाती हैं. मुख्यमंत्री के बंगले के लिए 90 करोड़ और उपमुख्यमंत्री शिंदे के बंगले के लिए 150 करोड़ रुपए मंजूर किए गए. 2018 में किसानों ने लांग मार्च निकाल कर सरकार को झुकाया था. अब फिर सरकार को जगाने के लिए किसानों को आंदोलन करना पड़ेगा. दिन-रात कड़ी मेहनत करनेवाले अन्नदाता किसान के प्रति इतना कठोर रुख क्यों होना चाहिए? खेती की बढ़ती लागत, फसल के कम भाव, सूखा और बेमौसम बारिश जैसी मौसम की मार से किसान पहले ही हलाकान हैं. उन्हें सचमुच राहत की जरूरत है लेकिन न जाने क्यों उन्हें प्राथमिकता देना तो दूर, उनकी उपेक्षा की जाती है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा