
चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थिति से निपटना होगा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इसे म देखते हुए विधानमंडल सत्र के दूसरे दिन 75,000 करोड़ रुपये की पूरक मांगें पेश की गईं। वर्तमान वित्त वर्ष का बजट 45,000 करोड़ रुपये अनुमानित घाटे का था। वह अब और बढ़ेगा। विधानमंडल के मानसून सत्र में 57,000 करोड़ तथा इस शीत सत्र में 75,000 करोड़ रुपये, इस तरह वित्त वर्ष के 9 महीनों में 1,32,000 करोड़ रुपये कुल पूरक मांगें रखी गईं, जो मंजूर भी हो जाती हैं। क्या यह वित्तीय नियोजन बिगड़ने का संकेत नहीं है? पूरक मांगों का प्रावधान इसलिए रहता है क्योंकि बजट में किसी योजना के लिए धन की कमी रह गई, बजट पेश करने के बाद कोई नई योजना शुरू की गई या कोई प्राकृतिक आपदा आ गई तो अतिरिक्त खर्च के लिए ऐसी मांगों का औचित्य है।
इस समय पूरक मांगों पर गौर करें तो अतिवृष्टि पीड़ित किसानों की मदद के लिए 15,000 करोड़ रुपये के प्रावधान को छोड़कर बाकी रकम का उपयोग इस समय चल रही योजनाओं के लिए है। लाडकी बहीण योजना के लिए इस वर्ष के बजट में 36,000 करोड़ रुपये का प्रावधान होने पर भी पूरक मांगों के जरिए 6,103 करोड़ रुपये अतिरिक्त मांगे गए हैं। इस योजना के लिए सामाजिक न्याय विभाग से प्रतिमाह 400 करोड़ रुपये निकाले जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्ष में 45,000 करोड़ से ज्यादा रकम लाडकी बहीण योजना पर खर्च की जाती है। अब महिला व बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने परिषद में कहा है कि जिन सरकारी कर्मचारियों ने इस योजना का अवैध रूप से लाभ उठाया है, उनसे यह रकम वसूल की जाएगी।
रिजर्व बैंक ने सभी राज्यों से पहले ही कहा था कि वोटों के लिए की जाने वाली लुभावनी घोषणाएं लागू करने पर उसका दुष्परिणाम बाद में भुगतना पड़ता है। लाडकी बहीण योजना इसकी मिसाल है। महाराष्ट्र के 7 लाख करोड़ के बजट में से 45,000 करोड़ रुपये अर्थात 6 से 7 प्रतिशत राशि 2 करोड़ से अधिक महिलाओं को बांटी जाती है। इससे राज्य की इकोनॉमी को कितना लाभ होता है और क्रयशक्ति कितनी बढ़ती है, इसका अध्ययन किया जाना चाहिए। लुभावनी योजनाओं पर बड़ी रकम खर्च करने से विकास कार्यों में रुकावट आती है। महाराष्ट्र पर अभी 9 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है।
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प्रतिवर्ष इसमें 1 लाख करोड़ की वृद्धि हो रही है। कर्ज की मात्रा राज्य की आय के 25 प्रतिशत से कम रहनी चाहिए। मुख्यमंत्री बार-बार कहते हैं कि भले ही कर्ज लेना पड़े लेकिन विकास कार्यों को रुकने नहीं दिया जाएगा। सरकार कर्ज लेती है लेकिन उसका उपयोग विकास के लिए नहीं, बल्कि दैनंदिन खर्च के लिए किया जाता है। इस पर कैग ने अनेक बार आपत्ति जताई है। सरकार का दावा है कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






