
बार-बार निर्भया कांड दोहरा रहे हैं दरिंदे (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: निर्भया जैसा कांड दोहराने वाले अपराधियों में दो बातें प्रमुख होती हैं। ये सोचते हैं कि जो चाहे वो कर सकते हैं, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। यह भावना समाज के प्रति एक नृशंस घोषणा जैसी है कि तुम्हारे कानून, तुम्हारी नैतिकता, तुम्हारी सभ्यता, तुम्हारे मूल्य, सबको मैं अपनी ताकत से रौंद रहा हूं। इन्हें किसी तरह की सजा से कोई डर नहीं लगता। निर्भया कांड के बाद कानून तो कठोर हुए, लेकिन क्या अपराधियों को तुरंत सजा मिली ? जवाब है- नहीं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कन्विक्शन रेट 28 से 32 फीसदी के आसपास है। मतलब यह कि 10 में से 7 दुष्कर्मी या नृशंस अपराधी हर हाल में कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं।
इसलिए अपराधियों की मानसिकता बनती जा रही है कि पकड़ भी लिए गए तो क्या हो जाएगा, जमानत मिल जाएगी, मैं गवाहों को दबा दूंगा, पीड़तिा बदनाम होने के डर से पीछे हट जाएगी और समाज अपमान का घूंट पीकर चुपचाप रह जाएगा। गंदी मानसिकता के चलते तमाम कानूनों के बावजूद औरतों के खिलाफ अपराध की दर लगातार बढ़ती ही जा रही है। अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया (एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखें तो 2021 में जहां देशभर में दुष्कर्म की कुल 31,677 घटनाएं घटी थीं यानी हर दिन औसतन 86 घटनाएं, वहीं 2022 में 2021 के मुकाबले ऐसी घटनाएं 4 फीसदी बढ़ गईं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2012 में देश को हिला देने वाले राजधानी दिल्ली के निर्भया कांड के बाद चाहे कितने ही कठोर कानून क्यों न बनाए गए हों, महिलाओं से संबंधित अपराधों में किसी तरह की जरा भी कमी नहीं आई.
क्या कभी हम इस सवाल से भी टकराते हैं कि निर्भया कांड के बाद हमारे समाज की सोच में क्या बदलाव हुआ? क्या उसके बाद से हमारे समाज ने दुष्कर्म की शिकार लड़कियों को दोषी मानने से मना कर दिया है? आज भी समाज दबी जुबान से बलात्कार की शिकार किसी लड़की या महिला को ही 90 प्रतिशत दोषी ठहराती है। आज भी हमारे समाज में हिंसा को मर्दानगी से जोड़कर ही देखा जाता है। जो समाज इस तरह की घटनाओं के बाद हायतौबा मचाता है, क्या वही समाज सोशल मीडिया में बढ़ते पोर्न कंटेंट को लेकर भी कभी आक्रोशित होता है? क्या ऐसी वेबसाइटों और इंटरनेट में ऐसे अश्लील कंटेंट डालने वालों के विरुद्ध कभी लोग एकत्र होकर आंदोलन करते हैं? हाल के दिनों ऐसे कई विश्लेषण सामने आए हैं, जब लोगों ने नेट पर उपलब्ध सॉफ्ट पोर्न को सेफ्टी वॉल्व की तरह देखने की कोशिश की है।
मतलब यह कि इनके कारण समाज में यौन अपराधों की दर कम है। बड़े पैमाने पर लोग सॉफ्ट पोर्न देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। यह ऐसे कुकृत्य का बचाव है, जो अपने साथ कई तरह की हिंसक गतिविधियों को जन्म देता है। जब तक हमारा समाज अपने घर, परिवार, स्कूल और मोहल्ले में स्त्री सम्मान को व्यक्त नहीं करेगा, जब तक हम वास्तविक जीवन में इर्दगिर्द की महिलाओं के प्रति सम्मान नहीं दर्शाएंगे, तब तक इस तरह के कांडों से हमें कोई कानून नहीं बचा सकता। इस तरह की घटनाएं समाज की विस्फोटक स्थिति दर्शाती हैं। ये दरिंदे सिर्फ किसी असहाय को अपनी ताकत का शिकार नहीं बनाते, बल्कि समूची सभ्यता और संस्कृति को मटियामेट करते हैं। इसलिए जितना जल्दी हो कानून के साथ समाज को भी जागना होगा और मिलकर इन दरिंदों के विरुद्ध खड़ा होना होगा, नहीं तो ये हमेशा इसी तरह समाज को मुंह चिढ़ाते रहेंगे.
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गुजरात के राजकोट जिले के अंतर्गत अटकोट थाना क्षेत्र के एक गांव में निर्भया कांड जैसी घटना सामने आई है। हाल के कुछ महीनों में इस तरह की आधा दर्जन से ज्यादा घटनाएं घट चुकी हैं। अटकोट की घटना इतनी वीभत्स है कि इसने देश को सिहराकर रख दिया है। यहां भी मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने में असफल रहे नराधम ने उसके गुप्तांग में लोहे की रॉड जैसी चीज डालकर उसे जीने-मरने के बीच छोड़ दिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लड़की की स्थिति स्थिर थी, कोई नहीं जानता कि क्या होगा ?
लेख- वीना गौतम के द्वारा






