विश्व पर्यावरण दिवस(फोटो-सोशल मीडिया)
विश्व पर्यावरण दिवसः भारत समेत दुनियाभर में पर्यावरण बेहतर बनाने की पहल कई दशकों से हो रही है, लेकिन कभी भी इस पर गंभीर चर्चा के बाद प्रभावी कदम नहीं उठाए गए। क्योंकि विषय काफी नीरस माना जाता है। पर्यावरण पर गंभीर चर्चा और प्रभावी कदम ने उठाने के लिए एक 16 वर्षीय स्वीडिश लड़की दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों को झिड़का तो पूरी दुनिया में चर्चा हुई। ये बात 23 सिंतबर 2019 की है। जब पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को संबोधित करते हुए गुस्सा हो गई। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप सहित अन्य वैश्विक नेताओं को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने में नाकाम रहने पर अपनी पीढ़ी से विश्वासघात करने का आरोप लगाया था।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हम जानेंगे कि सबसे पर्यावरण जागरूकता की शुरूआत कब हुई और किसने की। इसके अलावा भारत में इसकी शुरूआत कब हुई। साथ ही उस चिपको आंदोलन को संक्षेप जानेंगे जिसने भारत में पर्यावरण को बेहतर करने की पहल के रूप में जाना जाता है।
पर्यावरण जागरूकता की शुरुआत कब और कैसे हुई, और किसने की थी पहली पहल?
पर्यावरण जागरूकता की शुरुआत कोई एक दिन में नहीं हुई, बल्कि यह एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम है, जो औद्योगिक क्रांति के बाद प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए शुरू हुई। इसकी जड़ें वैश्विक स्तर पर 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में दिखाई देती हैं।
प्रारंभिक चेतावनियां और चिंताएं
19वीं सदी के अंत में कुछ वैज्ञानिकों और लेखकों ने यह महसूस करना शुरू किया कि मानव गतिविधियां प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही हैं। जॉर्ज पर्किन्स मार्श (George Perkins Marsh) की 1864 में आई किताब मैन एंड नेचर (Man and Nature) को पर्यावरण चेतना की पहली बड़ी अभिव्यक्ति माना जाता है। इसमें उन्होंने दिखाया कि कैसे मानव द्वारा पर्यावरण के दोहन ने पृथ्वी को नुकसान पहुंचाया है। औद्योगिक क्रांति के बाद प्रदूषण, जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों ने ध्यान खींचा, लेकिन इसे आम जनता तक पहुंचने में समय लगा।
वैश्विक स्तर पर पर्यावरण जागरूकता
1962 में रैचेल कार्सन ने “Silent Spring” टाइटल से एक किताब लिखा थी, जो पार्यावरण जागरूकता पर आधारित थी। अमेरिका की वैज्ञानिक और लेखिका रिचेल कार्सन ने रासायनिक कीटनाशकों (जैसे DDT) के खतरों को उजागर किया। इस किताब को आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की नींव माना जाता है। इसके 10 साल बाद 1972 में पर्यावरण संरक्षण को स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में पहला वैश्विक मंच मिला। संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित यह सम्मेलन पहली बार वैश्विक मंच पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था। इस सम्मेलन ने पर्यावरण को वैश्विक मुद्दा बना दिया। सम्मेलन को लेकर कहा जाता है कि यहीं से पर्यावरण जागरूकता की नींव पड़ी।
5 जून 1974 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। यह 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद शुरू हुआ और इसका उद्देश्य आम लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना है। 1980 के दशक में ओज़ोन परत, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों ने व्यापक जागरूकता फैलाई।
भारत में पर्यावरण जागरूकता की शुरुआत
1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। यह आंदोलन सरकार के खिलाफ था।उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में सरकारी ठेकेदारों ने वनों की कटाई शुरू कर दी, जिससे स्थानीय लोगों की जीविका और पर्यावरण को नुकसान होने लगा। इस आंदोलन के तहत महिलाएं पेड़ों को चिपक कर काटने से रोकती थीं। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया था, जिसके कारण इस नारीवादी आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है। इस आंदोलन ने पूरे देश में चर्चा पाई थी। चिपको आंदोलन का नेतृत्व सुदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी ने की थी। यह आंदोलन भारत में पर्यावरण संरक्षण की आवाज़ बुलंद बन गया था।
1980- पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को महत्व देते हुए एक अलग मंत्रालय बनाया था। भोपाल गैस त्रासदी के बाद भारत सरकार ने ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986’ कानून बनाया जो पर्यावरण रक्षा के लिए मील का पत्थर बन गया।