शिमला समझौते के बाद हाथ मिलाते हुए इंदिरा गांधी व जुल्फिकार अली भुट्टो (सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने बड़ा कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। इसके अलावा भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा जारी न करने और दूतावास में कर्मचारियों की संख्या कम करने समेत कई कदम उठाए हैं। इससे पाकिस्तान भड़क गया है। गुरुवार को प्रधानमंत्री शाहनवाज शरीफ की अध्यक्षता में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक हुई।
इस बैठक में भी पाकिस्तान ने लगभग वही कदम उठाए हैं, जो भारत ने इसके पहले उठाए थे। उसने शिमला समझौते को निलंबित करने की धमकी दी है। ऐसे में आइए जानते हैं कि यह शिमला समझौता क्या है? साथ ही भारत-पाकिस्तान ने शिमला समझौते पर कब हस्ताक्षर किए थे?
भारत ने मार्च 1971 में सैन्य हस्तक्षेप के जरिए पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग कर दिया और विश्व मानचित्र पर बांग्लादेश नाम से एक नए देश की स्थापना की। बांग्लादेश में पाकिस्तानी आर्मी ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया। भारत ने करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बनाया। इतना ही नहीं भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान के करीब पांच हजार वर्ग मील हिस्से पर भी कब्जा कर लिया।
इसके तकरीबन 16 महीने बाद तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की मुलाकात हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुई। यहां दोनों प्रधानमंत्रियों ने 2 जुलाई 1972 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिसे हम ‘शिमला समझौते’ के नाम से जानते हैं। इस समझौते में दोनों देशों ने शांतिपूर्ण तरीकों और बातचीत के जरिए अपने मतभेदों को सुलझाने की प्रतिबद्धता जताई गई थी।
इस समझौते में भारत-पाकिस्तान ने यह तय किया था कि दोनों देश किसी भी विवाद को आपस में बातचीत के माध्यम से सुलझाएंगे। इसमें कोई तीसरा देश या संगठन दखल नहीं देगा। कोई भी देश कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा को एकतरफा नहीं बदलेगा। दोनों देश इसका सम्मान करेंगे। व्यापारिक गतिविधियां होंगी।
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दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा, युद्ध या झूठे प्रचार का सहारा नहीं लेंगे, दोनों शांति से रहेंगे और अपने संबंधों को बेहतर बनाएंगे। भारत ने 90 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा किया और कब्जे वाली जमीन को आजाद कराया। पाकिस्तान ने कुछ भारतीय सैनिकों को भी रिहा किया। इस समझौते ने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने से रोक दिया।
भारत की हमेशा कहता रहा है कि कश्मीर का मामला भारत और पाकिस्तान के बीच का है। लेकिन इन सब के बावजूद पाकिस्तान कई बार यूएन और अन्य वैश्विक मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा है। सीमा भले न बदली हो लेकिन सीमा पर घुसपैठ को बढ़ावा देता रहा है। ऐसे में देखा जाए तो शिमला समझौता सिर्फ कागजों पर ही बचा था। जिसे रद्द करके पाकिस्तान ने कोई बड़ा तीर नहीं मारा है।