
सपा नेता आजम खान, (फाइल फोटो
 
    
 
    
Samajwadi Party Leader Azam Khan: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने बिहार चुनाव, अपनी सुरक्षा, जेल जीवन, मुस्लिम प्रतिनिधित्व, पार्टी संबंधों और राजनीतिक भविष्य पर खुलकर बात की। जेल से रिहाई के बाद पहली बार विशेष बातचीत में सपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं और ‘चिराग अभी बुझा नहीं है’। बिहार चुनाव में आपका आकलन क्या है? एनडीए या महागठबंधन कौन जीतेगा? आपको स्टार प्रचारक बनाया गया है।
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह एक तरह से राजनीतिक दलों की रस्म सी होती है, सीनियर लोगों को सम्मान दिया जाता है। जेल के दिनों में भी स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मेरा नाम था, लेकिन जाहिर है, जेल से बाहर नहीं जा सकते थे। अब तबीयत और सुरक्षा कारणों से भी नहीं जा पा रहा हूं। मेरे पास अब किसी तरह की सुरक्षा नहीं है। जो वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली थी, वह कुछ कमी और कारणों से मैंने खुद ही वापस कर दी।
वहीं, बिहार के मुद्दे पर बात करते हुए सपा नेता ने कहा कि बिहार की हालत अच्छी नहीं है। मेरा दिल चाहता है कि न सिर्फ मैं वहां जाऊं, बल्कि अगर किसी तरह मेरा योगदान हो सके, तो उसमें हिस्सा लूं। बिहार के हालात जितने जटिल हैं, उतने ही जागरूक लोग वहां हैं। जब-जब मुल्क पर खतरा हुआ है, बिहार ने उसकी अगुवाई की है। वहां के लोग चैंपियन हैं। जो भी फैसला होगा, अच्छा होगा।
सुरक्षा लौटाने के सवाल का जवाब देते हुए आजम खान ने कहा कि मुझे जब जेड सिक्योरिटी मिली थी, तो वो किसी राजनीतिक दल ने नहीं दी थी, बल्कि राज्यपाल ने महसूस किया कि मुझे सिक्योरिटी की जरूरत है। उस वक्त के एसपी ने लिखा था कि मेरे लिए जेड सिक्योरिटी भी कम है, इन्हें जेड प्लस दी जाए, जो नहीं दी गई। अब जेड देना तो दूर की बात है, कोई सुरक्षा नहीं है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा काफी नहीं है। वजह यह है कि बिना वजह लोग मेरा विरोध करते हैं। कोई भी बहाना बनाकर मेरे ऊपर ओपन फायर करा सकते हैं। कम से कम इतनी सुरक्षा तो हो जहां मैं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकूं।
क्या आपको लगता है कि आज के हालात में इंडिया गठबंधन एनडीए को हराने में सक्षम है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 1975 में जब देश में आपातकाल लगा, तो दहशत का माहौल हर जगह था। जब इंसान आजाद होता है, तो उसे डर नहीं लगता। जब 1977 में आपातकाल हटा, तो आपने देखा कि कैसा इंकलाब आया, सबकुछ बदल गया। बदलाव के लिए एक लम्हा चाहिए। हालात तो अच्छे नहीं हैं, लोग दुखी हैं, डरे हुए हैं। वह लम्हा कब आएगा, कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकता।
बिहार में सवाल उठ रहे हैं कि 14 फीसदी यादव आबादी वाले को सीएम घोषित कर दिया गया और 2.5 फीसदी मल्लाह आबादी वाले को डिप्टी सीएम, मगर 19 फीसदी मुसलमान आबादी से कोई नहीं। उनसे पूछा तक नहीं गया। क्या कहेंगे? इस पर सपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि मैं जानता हूं कि यह सवाल कहां से आया है और जिन्होंने सवाल उठाया, मैं उन्हें भी जानता हूं। मैं उन पर कोई कटाक्ष नहीं कर रहा हूं, उनसे मेरे बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं। उनसे मेरा पुराना रिश्ता रहा है। उनका रिश्ता और उनकी सियासत से मेरा नाता हमेशा गहरा रहा है।
लेकिन इतने ताकतवर होने के बावजूद भी वे अपने राज्य में कोई बड़ा इंकलाब नहीं ला सके। इस पर बहस करने का अभी समय नहीं है। सवाल यह नहीं है कि हमारी जनसंख्या ज्यादा है तो वजीर-ए-आजम की दावेदारी करना किसी हद तक ठीक हो सकता है। आज उससे बड़ी चीज है, हमें कोई पद मिले न मिले, सुकून-ए-दिल मिले, दहशत की जिंदगी न मिले। हमारे सामने डिप्टी सीएम बनना कोई बड़ी बात नहीं है।
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क्या मुसलमान वोट के लिए इस्तेमाल होते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए आजम खान ने कहा कि बिलकुल नहीं। जो लोग इस्तेमाल होते हैं, उनके पीछे कोई वजह होती होगी। लेकिन यह कहना कि मुसलमान सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल होते हैं, बहुत तौहीन की बात है। हम अपने हक के लिए काम करते हैं। अगर उत्तर प्रदेश में हमसे कहा गया कि हम “इस्तेमाल हुए”, तो यह गलत है, हमने तो अपने वोट का सही इस्तेमाल किया और जिन सरकारों को हमने चुना, उनसे बुनियादी काम करवाए।






