
आरके चौधरी
UP Politics: समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद आरके चौधरी ने प्रदूषण पर एक ऐसा बयान दिया है, जिसने धार्मिक भावनाओं को झकझोर कर रख दिया। उनका कहना है कि हिंदू पद्धति से शव जलाने से प्रदूषण बढ़ रहा है, क्योंकि इससे बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। इस बयान ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में तूफान मचा दिया है।
लखनऊ के पास मोहनलालगंज लोकसभा सीट से सपा सांसद आरके चौधरी ने अपने बयान में कहा, “मैं पर्यावरण मंत्री रह चुका हूं। जिस तरह से इस पर काम किया जाता है, वह गलत है। भारत में पर्यावरण सुधारने के नाम पर ज्यादातर एनजीओ और सरकारी विभाग केवल पेड़ लगाने की बात करते हैं। उनका मकसद ऑक्सीजन की खपत कम करना और कार्बन उत्सर्जन रोकना है, लेकिन जमीन पर इसका उल्टा हो रहा है।”
उन्होंने शव जलाने की पद्धति पर सवाल उठाते हुए कहा, “पूरे देश में लाशें जलाई जाती हैं, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती हैं और ऑक्सीजन की खपत होती है। यह तो उल्टा हो गया।”
चौधरी ने त्योहारों को भी नहीं बख्शा और होलिका दहन पर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि देशभर में पांच करोड़ जगहों पर एक साथ होलिका दहन होता है, जिससे भारी मात्रा में ऑक्सीजन की खपत होती है। उन्होंने इसके लिए भी पर्यावरणीय समाधान सुझाया और कहा कि शवों को जलाने के बजाय अन्य विकल्प जैसे दफनाना या इलेक्ट्रिक शवदाह गृह अपनाने चाहिए। उनका कहना था, “बात धर्म की नहीं है, जो गैस मनुष्य और जानवरों के लिए हानिकारक है, उसे बंद कर देना चाहिए। हमें हर हाल में ऑक्सीजन बचाना चाहिए।”
चौधरी के इस बयान के बाद केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने तीखा पलटवार किया। उन्होंने कहा कि यदि सपा सांसद को हिंदू रीति-रिवाजों से इतनी दिक्कत है तो उन्हें अपना धर्म बदल लेना चाहिए। गिरिराज सिंह ने कहा, “अगर उन्हें हिंदू पद्धतियों से इतनी समस्या है, तो वे अपना धर्म बदल लें। हम नहीं जानते कि वह हिंदू हैं या मुसलमान।”
उन्होंने शव दफनाने की प्रक्रिया को लेकर भी टिप्पणी की और कहा, “हिंदू धर्म में शव को जलाने के लिए एक ही जगह साढ़े तीन हाथ का स्थान चाहिए, जबकि दफनाने के लिए हर व्यक्ति के लिए साढ़े तीन हाथ जमीन चाहिए। दाह संस्कार में कम जगह का उपयोग होता है और भूमि का अधिग्रहण नहीं होता।” गिरिराज सिंह का तर्क था कि पर्यावरण की दृष्टि से दाह संस्कार अधिक व्यावहारिक है, क्योंकि यह भूमि का अधिक उपयोग नहीं करता।
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यह विवाद ऐसे समय में उभरा है जब दिल्ली और उत्तर भारत के कई राज्यों में गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति बनी हुई है। ठंड के मौसम में धुंध (Smog) और प्रदूषण बढ़ने से विजिबिलिटी घट रही है और लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण के मुख्य कारण वाहनों का धुआं, पराली जलाना, औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण कार्य हैं।






