संसद के मानसून सत्र में कामकाज का ब्यौरा
Parliament Monsoon Session: संसद का मॉनसून सत्र हंगामे के नाम पर इतिहास बनाकर खत्म हुआ। जहां जनता उम्मीद कर रही थी कि सांसद 120 घंटे तक देशहित में चर्चा करेंगे, वहां लोकसभा में सिर्फ 37 घंटे काम हुआ और राज्यसभा में महज 47 घंटे। बाकी समय बेकार की राजनीति में बर्बाद हो गया। इस दौरान सांसदों के शोरगुल से 204 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सवाल यह है कि जब देश गंभीर मुद्दों पर जवाब चाहता है, तब संसद में यह गैरजिम्मेदारी क्यों हावी रहती है।
लोकसभा में आवंटित 120 घंटे में से 83 घंटे बर्बाद हुए, यानी काम सिर्फ 31 फीसदी काम हुआ। वहीं राज्यसभा में 120 घंटे की योजना में से 73 घंटे हंगामे में खो गए और केवल 38 फीसदी काम हो सका। आंकड़े बताते हैं कि 69 फीसदी समय लोकसभा और 62 फीसदी समय राज्यसभा में जनता के मुद्दों की बजाय सियासी टकराव की भेंट चढ़ गया।
संसद में कामकाज ठप रहने से जनता के टैक्स के पैसे पर असर पड़ता है। लोकसभा में 83 घंटे की बर्बादी से 124 करोड़ 50 लाख रुपए और राज्यसभा में 73 घंटे की बर्बादी से 80 करोड़ रुपए का कुल नुकसान हुआ। कुल मिलाकर 204 करोड़ 50 लाख रुपए जनता के टैक्स से लिए गए पैसे यूंही तबाह हो गए। यह तब हुआ जब कई राज्यों में लोग सड़क, बिजली, स्वास्थ्य के लिए आज भी भटक रहे हैं। इन सब तमाम जरूरी मुद्दों की बजाय सांसद शोर मचाने में मशगूल हैं।
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देश की पहली लोकसभा में 3784 घंटे की बैठकें हुईं और 333 बिल पास हुए थे। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि 17वीं लोकसभा में 2019 से 2024 तक 222 बिल पास हुए। वहीं वर्तमान में हंगामे के बीच जरूरी बिल भी बिना चर्चा के पास हो रहे हैं। आज 93% सांसद करोड़पति हैं, जिन्हें हर महीने दो लाख 54 हजार रुपए का वेतन-भत्ता भी मिल रहा है। बावजूद इसके, कई दिनों तक संसद कुछ मिनटों के लिए ही चल पाती है। वर्तमान में सांसद में स्थिति है कि किसी दिन तो सदन की कार्यवाही एक मिनट भी नहीं चल पाती है और इस सत्र में 21 दिन में केवल 5 दिन लोकसभा 1 घंटे या उससे ज्यादा समय तक चली है।