कर्नाटक में जाति जनगणना पर घमासान सीएम सिद्धारमैया (फोटो- सोशल मीडिया)
Karnataka Caste Census Controversy: कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के एक फैसले ने राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। आगामी 22 सितंबर से शुरू होने वाली जातीय जनगणना को लेकर राज्य का प्रभावशाली लिंगायत समुदाय अपनी धार्मिक पहचान को लेकर एक बड़े चौराहे पर खड़ा हो गया है। यह जनगणना अब सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक और राजनीतिक लड़ाई बन चुकी है। इस फैसले ने कांग्रेस सरकार के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है, क्योंकि यह सवाल उठ गया है कि लिंगायत समुदाय खुद को हिंदू मानेगा या एक अलग धर्म।
यह पूरा विवाद इस बात पर केंद्रित है कि लिंगायत समुदाय के लोग जातिगत सर्वेक्षण के फॉर्म में अपने धर्म के कॉलम में क्या भरेंगे। समुदाय के भीतर इस बात को लेकर गहरे मतभेद हैं। एक बड़ा वर्ग खुद को हिंदू धर्म का अनुयायी नहीं मानता और एक अलग धर्म के दर्जे की मांग करता रहा है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर उन्हें ‘वीरशैव लिंगायत’ के रूप में एक हिंदू उप-जाति के तौर पर ही वर्गीकृत किया जाता है, जिससे यह पहचान का संकट और भी गहरा गया है।
इस आग में घी का काम किया सिद्धारमैया सरकार में वन मंत्री ईश्वर खांड्रे के एक बयान ने। उन्होंने वीरशैव-लिंगायत महासभा की ओर से समुदाय के सदस्यों को सलाह दी कि वे धर्म वाले कॉलम में ‘अन्य’ का विकल्प चुनें और अपनी पहचान ‘वीरशैव-लिंगायत’ के रूप में दर्ज कराएं। इस सलाह के बाद विपक्षी दल भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है। भाजपा के लिंगायत नेताओं ने इसे हिंदू वोटों को बांटने और भाजपा के जनाधार को कमजोर करने की एक सोची-समझी साजिश करार दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद बसवराज बोम्मई ने आरोप लगाया कि महासभा पूरी तरह से कांग्रेस के साथ मिल गई है।
यह भी पढ़ें: कोलकाता में तीनों सेनाओं का महामंथन, कमांडर्स कांफ्रेंस का PM करेंगे उद्घाटन, सुरक्षा पर पैनी नजर
बसवराज बोम्मई ने महासभा से कानून और संविधान के दायरे में रहकर सलाह देने का अनुरोध किया और कहा कि संविधान में केवल छह धर्मों का उल्लेख है, इसलिए भ्रम पैदा नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र ने भी स्पष्ट किया कि, “हम हिंदू हैं और चाहते हैं कि हमारे धर्म के रूप में इसका ही उल्लेख हो।” दरअसल, लिंगायत संप्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में समाज सुधारक महात्मा बसवण्णा ने की थी। इस मत के अनुयायी शिव को एकमात्र देवता के रूप में पूजते हैं, लेकिन वे मूर्ति पूजा, जाति प्रथा और वेदों को नहीं मानते, जिस कारण वे खुद को सनातन हिंदू परंपरा से अलग मानते हैं।