रामभद्राचार्य (Image- Social Media)
नवभारत डेस्क: जगद्गुरु रामभद्राचार्य हिंदू धर्म, शिक्षा तथा साहित्य में खूब नाम कमाया है। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है और उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। बचपन में केवल दो महीने की आयु में ही उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी। लेकिन उनकी शारीरिक कमी उनके ज्ञान और सेवा की यात्रा में कभी बाधा नहीं बनी। आज उनका जन्मदिन है। आइए आपको उनके सफर के बारे में बताते हैं।
बता दें कि गिरधर मिश्रा ने अपनी शिक्षा बिना देखे केवल सुनकर पूरी की। वे न पढ़ सकते थे और न ही लिख सकते थे, यहां तक कि उन्होंने ब्रेल लिपि का भी उपयोग नहीं किया। उनकी शिक्षा और ज्ञान का माध्यम उनकी गहरी स्मरण शक्ति और सुनने की क्षमता थी। उन्होंने केवल सुनकर ही संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली और 22 अन्य भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया।
रामभद्राचार्य रामानन्द सम्प्रदाय के चार प्रमुख जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं। 1988 में इस पद पर प्रतिष्ठित होने के बाद से उन्होंने समाज और धर्म की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे अपने प्रवचनों, रचनाओं और दार्शनिक विचारों के माध्यम से लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संत तुलसीदास के नाम पर तुलसी पीठ की स्थापना की। यह संस्था धार्मिक और सामाजिक सेवा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसके साथ ही उन्होंने 2001 में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो विशेष रूप से विकलांग बच्चों और युवाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए समर्पित है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है, जो पूरी तरह से दिव्यांग छात्रों के लिए समर्पित है। वे इस विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति हैं।
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रामभद्राचार्य एक बहुभाषाविद्, कवि और लेखक हैं। उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकें और ग्रंथों की रचना की है। इनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में) भी शामिल हैं। तुलसीदास पर उनकी विशेषज्ञता उन्हें इस क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है। उनकी रचनाएं न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे समाज और धर्म के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन इस बात का प्रमाण है कि शारीरिक बाधाएं कभी भी किसी के सपनों और संकल्प को नहीं रोक सकतीं। उन्होंने अपनी अद्भुत स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास के बल पर वह स्थान प्राप्त किया, जो बहुत कम लोगों को मिल पाता है। उनका जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा है, खासकर उन लोगों के लिए जो जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना कर रहे हैं। साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।