हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
High Court: सरकारी जमीन अतिक्रमणों की चपेट में आना भले ही कोई नई बात न हो किंतु सरकारी जमीन पर लेआउट बनाकर प्लॉट बेचना किसी आश्चर्य से कम नहीं है, जबकि प्लॉट बेचने के लिए भी कई सरकारी विभागों में दस्तावेजों का पंजीयन कराना पड़ता है। इसके बावजूद उस समय एक ऐसे मामले का खुलासा हुआ जब कथित धोखेबाज करीमुल्लाह खान हाजी हफीजुल्लाह खान जमानत के लिए हाई कोर्ट की शरण में आया।
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए जमानत देने से इनकार कर अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया कि आरोपी ने सरकारी जमीन को अपनी बताकर कई लोगों को ठगा है और इस मामले में हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।वाठोडा पुलिस थाना में शिकायतकर्ता मोहम्मद शमी आलम ताहिर हुसैन ने शिकायत दर्ज कराई थी।
6 जनवरी 2025 को एनआईटी के अधिकारियों ने इन प्लॉटों का दौरा किया और अतिक्रमण हटा दिया। यह बताया गया कि आरोपियों द्वारा बेचे गए प्लॉट अवैध थे क्योंकि NIT ने 1962 में ही इन जमीनों का अधिग्रहण सीवेज डिस्पोजल प्लांट और कचरा संग्रहण केंद्र के लिए किया था। आरोपी इनायतुल्लाह, रहमतुल्लाह, करीम तुल्लाह, हिदायतुल्लाह, सूफियाज खान लिकायतुल्लाह खान ने 60.04 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए मुआवजा भी प्राप्त किया था। इससे पता चलता है कि उन्हें जमीन के अधिग्रहण की जानकारी थी, फिर भी उन्होंने शिकायतकर्ता को धोखा देने के इरादे से प्लॉट नंबर 13-ए और 14-ए बेचने का समझौता किया।
याचिकाकर्ता करीमुल्लाह खान के वकील ने तर्क दिया कि शिकायत में उनके मुवक्किल का नाम सीधे तौर पर नहीं है और किसी भी बिक्री विलेख पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि उनका मुवक्किल दस्तावेजों की जालसाजी या किसी भी धोखाधड़ी में शामिल नहीं है, इसलिए उनकी हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है।
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दोनों पक्षों की दलीलों और जांच कागजात का अध्ययन करने के बाद अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष और शिकायतकर्ता के वकील के तर्क में दम है। अदालत ने कहा कि 1962 में ही 60 एकड़ जमीन एनआईटी द्वारा अधिग्रहित की गई थी और केवल 6 एकड़ जमीन ही मालिकों को वापस की गई थी। इसके बावजूद आरोपी ने खुद को पूरी जमीन का मालिक बताया, उसे प्लॉटों में बांटा और बेचकर आर्थिक लाभ कमाया। जांच कागजात और विभिन्न घर मालिकों के बयानों से करीमुल्लाह खान की संलिप्तता का खुलासा हुआ है।