चीफ जस्टिस बी.आर. गवई व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय एस. ओका (फोटो- सोशल मीडिया)
Abhay S Oka Remark on Collegium: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय एस. ओका ने चीफ जस्टिस बी.आर. गवई के एक फैसले पर सवाल उठाए हैं। यह मामला तब सामने आया, जब जस्टिस गवई के भांजे राज वाकोडे का नाम बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के लिए प्रस्तावित किया गया। बीते सप्ताह ही कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की थी। इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि अगर वह चीफ जस्टिस होते तो खुद को इस तरह के कॉलेजियम से अलग कर लेते। यह खबर न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया पर फिर से एक नई बहस छेड़ रही है।
जस्टिस अभय एस. ओका ने इस बात पर जोर दिया कि जिस भी न्यायाधीश के रिश्तेदार के नाम पर कॉलेजियम में चर्चा हो, उसे तुरंत खुद को इस प्रक्रिया से अलग कर लेना चाहिए। उनका कहना है कि एक तरफ यह सवाल उठता है कि अगर कोई उम्मीदवार पूरी तरह से योग्य है तो क्या सिर्फ इसलिए उसे मौका नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि उसका कोई रिश्तेदार न्यायपालिका में है? लेकिन दूसरी ओर, पारदर्शिता और मर्यादा बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि चीफ जस्टिस ऐसे मामलों से दूरी बना लें।
जस्टिस ओका ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि इस मामले में जस्टिस गवई ने खुद को अलग किया था या नहीं, लेकिन ऐसा करना ही सही होता। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि ऐसा मामला सामने आता है, तो मुख्य न्यायाधीश को इस कॉलेजियम से अलग हो जाना चाहिए और एक और वरिष्ठ न्यायाधीश को शामिल करके कॉलेजियम का विस्तार करना चाहिए। इसके बाद ही उस संबंधित व्यक्ति के नाम पर विचार किया जाना चाहिए। जस्टिस ओका ने इसे सिस्टम की मर्यादा का सवाल बताया, जिसकी परिभाषा हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकती है। जब उनसे पूछा गया कि अगर वह खुद ऐसी स्थिति में होते तो क्या करते, तो उन्होंने कहा कि यह एक काल्पनिक सवाल है लेकिन यदि वे होते तो फिर वह ऐसी स्थिति को पैदा होने ही नहीं देते।
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जस्टिस ओका ने अपने करियर की शुरुआत में आरएसएस से संबंधों की चर्चाओं पर भी खुलकर बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके पिता 2017 तक जीवित रहे, जबकि वह 2003 में जज बने थे। उन्होंने कहा कि उनके पिता कभी आरएसएस की शाखा में नहीं गए। वे सिर्फ एक या दो ऐसे ट्रस्ट से जरूर जुड़े थे, जिनसे आरएसएस के लोगों का भी संबंध था। इसलिए यह कहना गलत है कि उनके पिता आरएसएस के सदस्य थे। जस्टिस ओका ने कहा कि जज बनने के बाद व्यक्ति पूरी तरह से बदल जाता है और वह केवल संविधान की शपथ लेता है। हर फैसला संविधान के आदर्शों और कानूनों के आधार पर ही लिया जाता है।