
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
NATO-US Conflict: अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध की रणनीति को लेकर लगातार मतभेद सामने आ रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस में एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को नई बहस में झोंक दिया है। रिपब्लिकन पार्टी के केंटकी से सांसद थॉमस मैसी ने हाल ही में एक विधेयक पेश कर अमेरिका को NATO से बाहर निकलने की मांग की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मैसी ने मंगलवार को यह बिल पेश किया। उनका कहना है कि NATO एक ऐसा सैन्य गठबंधन है, जिसकी मूल अवधारणा शीत युद्ध के दौर में सोवियत संघ के खतरे से निपटने के लिए की गई थी। लेकिन आज वह खतरा मौजूद नहीं है, इसलिए अमेरिका का इस गठबंधन में बने रहना रणनीतिक रूप से गैर-जरूरी हो चुका है।
मैसी ने कहा कि अमेरिका को NATO छोड़ देना चाहिए और वह पैसा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, ना कि उन सोशलिस्ट देशों पर जिनके लिए हम दशकों से खर्च उठा रहे हैं। NATO की वजह से अमेरिकी टैक्सपेयर्स के ट्रिलियन डॉलर बर्बाद हुए हैं। साथ ही यह गठबंधन अमेरिका को अनावश्यक वैश्विक संघर्षों में उलझा देता है।
सांसद का तर्क है कि अमेरिका दुनिया का सुरक्षा प्रदाता नहीं बन सकता, खासकर तब जब कई धनी यूरोपीय देश अपनी रक्षा क्षमता पर पर्याप्त खर्च नहीं करते। उनका मानना है कि NATO की आर्थिक संरचना से अमेरिका पर अनुपातहीन बोझ पड़ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह बिल पास हो जाता है, तो अमेरिकी सरकार को आधिकारिक रूप से NATO को सदस्यता समाप्ति की सूचना देनी होगी। इसके बाद अमेरिका की ओर से NATO के बजट में जाने वाला धन भी रोक दिया जाएगा, जिससे गठबंधन के संचालन पर व्यापक असर पड़ सकता है।
यह पहला मौका नहीं है जब रिपब्लिकन नेताओं ने ऐसी मांग उठाई हो। इससे पहले सीनेटर माइक ली ने भी इसी तरह की पहल करते हुए कहा था कि NATO में बने रहना अब अमेरिका की रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार सार्वजनिक मंचों पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि NATO में अमेरिका अपनी हिस्सेदारी से कई गुना ज्यादा पैसा खर्च करता है, जबकि अन्य देश अपेक्षित योगदान नहीं देते।
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अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह बिल पास होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन इसका राजनीतिक और कूटनीतिक असर गहरा हो सकता है। यह प्रस्ताव अमेरिकी घरेलू राजनीति में बदलते समीकरणों और NATO को लेकर उभरती नई सोच का संकेत भी देता है।






