कौन है भारत में प्लास्टिक सर्जरी के जनक (सौ.सोशल मीडिया)
प्लास्टिक सर्जरी, यानि आपकी असली बनावट में किसी प्रकार की गड़बड़ी नजर आए तो पर प्लास्टिक सर्जरी के जरिए उसे बदलने का प्रयास कर सकते है। आजकल लोगों के बीच प्लास्टिक सर्जरी का यह चलन खूबसूरती को निखारने के लिए हो रहा है जिसमें बॉलीवुड के कई सितारों को आप देख सकते है जिन्होंने अपनी असली बनावट को सर्जरी के जरिए आकर्षक बनाया।
हाल ही के दिनों में एक्टर राजकुमार राव को हमने बदला हुआ देखा था जिससे यह अनुमान नजर आया कि, एक्टर ने प्लास्टिक सर्जरी से खुद को बदला है। क्या आपने सोचा है आखिर यह तकनीक कहां से है आई और क्या प्राचीन काल में भी इस प्रकार के इलाज किया जाता था। चलिए जानते है इसके बारे में..
यहां पर प्राचीन भारत में सबसे जाने माने सर्जन के रूप में पितामह महर्षि सुश्रुत का नाम जाना जाता है जिन्होंने अपनी लिखी हुई सुश्रुत संहिता में नाक की प्लास्टिक सर्जरी का जिक्र किया है। वैसे तो प्लास्टिक सर्जरी की यह प्रक्रिया विदेशों से आई है लेकिन इसे भारत में भी अलग तरीके से प्राचीन काल में अपनाया जाता था। आज से लगभग 3 हजार साल पहले प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने पहली बार नाक की सर्जरी की थी। सुश्रुत संहिता में लगभग 300 तरह की सर्जिकल प्रक्रियाओं की जानकारी मौजूद है। इसमें ब्लैडर स्टोन निकालना, कैटरेक्ट, हर्निया और यहां तक कि सर्जरी के जरिए प्रसव करवाए जाने का भी जिक्र दिया हुआ है।
प्राचीन काल में अत्याचार काफी होते उस दौरान में गंभीर अपराधों के लिए नाक और कान काट दिए जाते थे। इसे सही करने के लिए अपराधी चिकित्सा विज्ञान की मदद से इन अंगों को वापस लाने का प्रयास किया जाता था लेकिन यह कर पाना इतना आसान नहीं था। इसे लेकर महर्षि सुश्रुत को इसे सही करने के लिए किसी ऐसी तकनीक की जरूरत पड़ी जो व्यक्ति के कटे अंगों को सर्जरी से जोड़ सकें। इस दौरान प्लास्टिक सर्जरी का तरीका अपनाते हुए घायलों पर नाक वापस जोड़ने की सर्जरी का प्रयास किया गया।
सर्जरी के तरीके को लेकर सुश्रुत संहिता में उल्लेख मिलता है कि, महर्षि सुश्रुत नाक की सर्जरी के दौरान व्यक्ति के गाल या माथे की त्वचा को लेकर सर्जरी के दौरान उसका इस्तेमाल करते थे। सुश्रुत के पास सर्जरी के बाद भी तरह-तरह के इन्फेक्शन से बचाव के लिए कई प्रकार की औषधियां मौजूद थीं, जिन्हें रूई की सहायता से अंग पर लपेटकर ढक दिया जाता था।
इसे लेकर सुश्रुत संहिता में ग्यारह सौ बीमारियों का भी जिक्र और उनके इलाज के लिए 650 तरह की दवाओं उल्लेख है। इतना ही नहीं कटे हुए पार्ट की सिलाई करने के लिए टांकों की जगह चींटियों के इस्तेमाल किया जाता था जो उनके जबड़े घाव को क्लिप करने का काम करती थी।
महर्षि सुश्रुत की यह सर्जरी को लेकर सुश्रुत संहिता का अनुवाद पहली बार अंग्रेजी भाषा में हुआ था तो वहीं पर इस प्रकार की सर्जरी का नजारा भारत प्रवास के दौरान 1793 में दो अंग्रेज सर्जनों ने भी आंकों से देखा था वे आश्चर्यचकित रह गए थे। इस प्रकार से भारत की यह प्राचीन सर्जरी पश्चिमी देशों में भी पहचानी जाने लगी थी।