शरीर का सुरक्षा कवच होती है नाक (सौ. सोशल मीडिया)
Importance of Nose: अच्छी सेहत के लिए शरीर का स्वस्थ रहना जरूरी होता है तो वहीं पर शरीर के सभी अंग किसी ना किसी रूप में हमारे लिए भूमिका निभाते है। हम बात कर रहे है नसिका तंत्र यानि नाक की। आयुर्वेद में नाक को केवल सांस लेने का अंग नहीं बल्कि शरीर के सुरक्षा कवच के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद में , महान ग्रंथों जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय में नाक की संरचना, कार्य और चिकित्सा प्रक्रियाओं को विशेष महत्व दिया गया है। नाक आखिर कैसे शरीर के सभी अंगों के लिए फायदेमंद हो सकता है चलिए जानते है।
यहां पर आयुर्वेद में नाक के बारे में बताया गया है। इसमें नाक को ‘प्राणायः द्वारम्’ कहा गया है, जिसका अर्थ है जीवन ऊर्जा के प्रवेश का मार्ग। प्राण वायु के बिना शरीर का कोई भी कार्य संभव नहीं है। सांस के माध्यम से जो वायु शरीर में प्रवेश करती है, वही कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाकर जीवन बनाए रखती है। इसके अलावा नाक का सीधा संबंध दिमाग से होता है तो वहीं पर नाक की शारीरिक बनावट इस प्रकार है कि यह बाहरी हानिकारक कणों, जीवाणुओं और धूल को छानने का कार्य करती है। इसके अलावा नाक के भीतर छोटे बाल और श्लेष्मा (म्यूकस) होते हैं जो अवांछनीय तत्वों को अंदर प्रवेश करने से रोकते हैं। यह प्रक्रिया रोगों से लड़ने की शक्ति देती है।
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जैसा कि, हम जानते है नाक और दिमाग का सीधा संबंध होता है उस तरह ही आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में नस्य कर्म जैसी प्रक्रिया विकसित की गई है। इसमें औषधियों को नाक के माध्यम से डाला जाता है ताकि सिर, मस्तिष्क, नेत्र, कंठ और नाड़ियों से संबंधित विकारों का उपचार किया जा सके। यह खास तौर पर मानसिक थकान, भूलने की बीमारी, सिरदर्द, नींद की कमी और चिंता जैसे रोगों में लाभ दिलाने का काम करता है। नाक न केवल वायु का प्रवेश मार्ग है, बल्कि वह वायु का शोधन, तापमान संतुलन और आर्द्रता नियंत्रण भी करती है। ठंडी या प्रदूषित हवा को नाक भीतर जाकर गर्म और शुद्ध करती है, जिससे फेफड़ों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इसके अलावा योग और प्राणायाम में नाक का महत्व होता है तो वहीं पर सांस लेने से मानसिक शांति, तंत्रिका तंत्र की मजबूती और प्राण के संतुलन में सहायक होते है। अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन और भ्रामरी जैसी प्राणायाम विधियां नाक के लिए भूमिका निभाते है।