दादा साहेब फाल्के (सोर्स: सोशल मीडिया)
मुंबई: भारतीय सिनेमा के दिग्गज फिल्म मेकर दादा साहेब फाल्के की 16 फरवरी यानी आज डेथ एनिवर्सरी है। दादा साहब फाल्के ने साल 1912 में फाल्के फिल्म्स कंपनी की स्थापना की थी। इसके बाद दादा साहब फाल्के ने भारत की पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र साल 1913 में बनाई थी। जो भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म थी। यह एक व्यावसायिक सफलता थी और एक संपन्न उद्योग की शुरुआत का संकेत था।
दादा साहेब फाल्के की पहली फिल्म देखने धुंडीराज गोविंद फाल्के थिएटर गए हुए थे। फिल्म जैसे ही खत्म हुई, दर्शकों में बैठा एक व्यक्ति जोर-जोर से ताली बजाने लगा। लोग उसे देखकर हैरान थे। ये शख्स थिएटर में लगने वाली किसी भी ब्रिटिश फिल्म को देखना नहीं छोड़ता था। लेकिन इस फिल्म में कुछ खास बात थी जो इस शख्स को भा गई।
दादा साहेब के लिए फिल्में बनाना इतना आसान नहीं था। उस जमाने में नई टेक्नोलॉजी थी नहीं और जो थी भी उनका भारत में मिलना मुश्किल था। दादा साहेब बड़े हरफनमौला थे। इससे पहले वो पेंटिंग, प्रिंटिंग जैसे कई काम कर चुके थे। ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने के बाद भारत में फिल्म बनाने का फैसला कर चुके थे। अब फैसला लेने के बाद इससे पीछे हटना उनकी फितरत नहीं थी। उन्होंने फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाने का फैसला कर लिया था। लेकिन इसके लिए कलाकार, इक्विपमेंट, पैसे, लोगों के खाने की व्यवस्था सब कुछ करना था।
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दादा साहेब ने कई लोगों से फिल्म को प्रोड्यूस करने के लिए फंड मांगा। लेकिन, इस नए काम में पैसे लगाने से सब डर रहे थे। उन्हें यकीन दिलाने के लिए दादा साहेब ने पौधों के विकास पर एक छोटी सी फिल्म बनाई। तब जाकर दो लोग उन्हें फंड देने को तैयार हो गए। हालांकि अब भी मुश्किलें कम नहीं थीं। लिहाजा दादा साहेब ने अपनी पत्नी के गहने और संपत्ति तो गिरवी रख ही दी साथ ही फिल्म बनाने के लिए कर्ज भी ले लिया।
दादा साहेब फिल्म का निर्माण करने की टेक्नोलॉजी सीखने के लिए 1912 में लंदन गए। वहीं से वो कैमरा और फिल्म बनाने के लिए जरुरत में आने वाला कुछ सामान लेकर भारत लौटे। उन्होंने फिल्म को शूट करने का फैसला बंबई में लिया। इसके बाद वो फिल्म के कास्ट की तलाश में जुट गए। काफी मशक्कत के बाद उन्होंने कास्ट को फाइनल किया।
दादा साहेब का फिल्मी करियर 19 साल चला। इस दौरान उन्होंने 26 शार्ट फिल्मों सहित लगभग 121 फिल्मों का निर्माण किया। दादा साहेब को भारतीय फिल्मों का जनक कहा जाता है। 19 सालों तक उन्होंने फिल्मों में सक्रिय योगदान दिया। इसके बाद 16 फरवरी 1944 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु के उपरांत भारत सरकार ने उनके नाम से 1969 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड की शुरुआत की।