जीवन ने खलनायकी को बना दिया अमर
मुंबई: बॉलीवुड में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो पर्दे पर जितने प्रभावशाली होते हैं, असल जिंदगी में उतने ही मिसअंडरस्टूड भी हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है जीवन, जिनका असली नाम ओंकार नाथ धर था। जन्म 24 अक्टूबर 1915 को कश्मीर में हुआ। बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, लेकिन पारंपरिक और सख्त ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उन्हें फिल्मों से दूर रखा गया। परिवार में अभिनय वर्जित था।
जीवन जब मात्र तीन वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता दोनों का निधन हो गया। इसके बाद परिवार की जिम्मेदारी दादा-दादी और रिश्तेदारों पर आ गई। अभिनय के लिए उनके जुनून ने उन्हें महज 18 वर्ष की उम्र में मुंबई की ओर रुख करने पर मजबूर कर दिया, जब उनकी जेब में सिर्फ 26 रुपये थे। मुंबई में जीवन ने मोहनलाल सिन्हा के स्टूडियो में सहायक के रूप में काम करना शुरू किया। यहीं से उन्हें फिल्म ‘फैशनेबल इंडिया’ से पहला ब्रेक मिला।
जीवन के करियर ने फैशनेबल इंडिया के बाद रफ्तार पकड़ी और उन्होंने 1935 में ‘रोमांटिक इंडिया’ जैसी फिल्म से पहचान हासिल की। लेकिन असली पहचान उन्हें नारद मुनि के किरदार से मिली, जिसे उन्होंने लगभग 60 बार विभिन्न भाषाओं की धार्मिक फिल्मों में निभाया। हालांकि जीवन को उनकी खलनायकी के लिए ज्यादा जाना जाता है।
‘अमर अकबर एंथनी’, ‘धर्मवीर’, ‘कानून’, ‘लावारिस’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘सुरक्षा’ जैसी फिल्मों में उन्होंने विलेन के रूप में जो छवि बनाई, वो इतनी प्रभावी थी कि लोग असल जिंदगी में भी उन्हें नापसंद करने लगे। एक बार तो किसी महिला ने उन्हें चप्पल तक मार दी, क्योंकि उसने जीवन को फिल्मी खलनायक समझ कर गुस्सा निकाल दिया।
उनकी आवाज़, संवाद अदायगी और आंखों की एक्सप्रेशन उन्हें खास बनाते थे। फिल्म ‘कानून’ में उनका मोनोलॉग आज भी क्लासिक माना जाता है। अभिनय के अलावा उन्होंने फोटोग्राफी, संगीत और नृत्य में भी कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली। जीवन के बेटे किरण कुमार ने भी फिल्मों में कदम रखा और पिता की तरह कई फिल्मों में खलनायक के किरदार निभाकर पहचान बनाई।