काटोल विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
नागपुर: महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनावी महाभारत सियासी सिपहसालार उतरने को तैयार हैं। इस बार बाजी किसके हाथ आएगी और कौन सत्ता की कुर्सी पर आसीन होगा इसके लिए जद्दो-जेहद शुरू हो गई है। राज्य के 288 मोर्चों पर लड़ी जाने वाली इस जंग में कौन किस मोर्चे पर ज्यादा प्रभावशाली है यह जानने के लिए हम सीट-दर-सीट विश्लेषण कर रहे हैं। इस फेहरिस्त में आज काटोल सीट की बारी है। तो चलिए जानते हैं कैसा रहा है यहां का इतिहास और क्या कहतें हैं इस बार के समीकरण।
नागपुर जिले के अंतर्गत आने के बावजूद भी इस सीट पर संघ का प्रभाव बहुत कम या यूं कहें कि न के बराबर ही दिखा है। यहां 1972 से लेकर 2019 तक चार बार कांग्रेस और चार बार एनसीपी कब्जा जमाने में कामयाब रही है। पिछले चुनाव यानी 2019 में भी यहां एनसीपी को ही विजयश्री मिली है। इसके अलावा एक-एक बार आईसीएस, निर्दलीय और बीजेपी बाजी मारने में कामयाब रही है। 2014 में यहां बीजेपी के टिकट पर आशीष देशमुख ने इकलौती जीत दर्ज की है।
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2019 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक 2 लाख 86 हजार 644 वोटर्स वाली काटोल विधानसभा सीट पर 42 हजार 853 के एससी वोटर्स हैं। इसके साथ ही इस विधानसभा सीट पर 34 हजार 913 आदिवासी वोटर्स भी किसी भी प्रत्याशी का भाग्य लिखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं, यहां पर करीब 10 हजार से ज्या मुस्लिम मतदाता भी हैं। बात करें ग्रामीण और शहरी वोट प्रतिशत की तो 2 लाख 22 हजार 722 ग्रामीण वोटर्स हैं, जो कि कुल वोट का करीब 78 फीसदी हैं।
चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से एक बात तो साफ है कि 2024 में यहां पलड़ा एनसीपी (शरद पवार) का भारी दिखाई दे रहा है। अनिल देशमुख के की तरफ यह सीट झुकती हुई दिखाई दे रही है। लेकिन चुनावों के औपचारिक ऐलान में अभी कुछ समय बाकी है। नेताओं के लिए चुनावी मौसम में कलाबाजियां करना आम बात है। ऐसे में कौन किस तरफ पलट जाए और जीत हार का ऊंट किस करवट बैठ जाए इसका सटीक अंदाजा लगाना कठिन है।
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