हिंगणघाट विधानसभा सीट (ग्राफिक इमेज)
वर्धा: महाराष्ट्र में सियासी जंग की रणभेरी बजने ही वाली है। उससे पहले राजनीतिक दल और राजनेता रणनीति तैयार करने में जुट गए हैं। दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषक जनता की नब्ज पहचानने में लगे हुए हैं। इसी कड़ी में हम भी चाहते हैं कि आप तक हर सीट का विश्लेषण भी पहुंचाया जाए। जिससे चाय की चौपाल पर चर्चा के दौरान आपको हर सीट के आंकड़े और कहां किसका दबदबा रहा है या फिर रहने वाला यह पता रहे। तो बात करते हैं आज हिंगणघाट सीट की।
1978 से अस्तित्व में आई वर्धा जिले की इस सीट पर शुरुआत के दो दौर में कांग्रेस ने कब्जा जमाया लेकिन उसके बाद उसे वनवास के साथ अनिश्चितकालीन अज्ञातवास भी मिल गया। उसके बाद एक बार यहां आईसीएस को जनता ने जनादेश दिया तो एक बार एनसीपी को। इसके अलावा तीन बार शिवसेना प्रत्याशी को जनता ने यहां से विधायक चुनकर विधानसभा तक पहुंचाया। वहीं, अंतिम दो बार से यहां बीजेपी विजयश्री हासिल कर रही है।
हिंगणघाट विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण ऐसे हैं कि जो भी दल यहां एससी और एसटी वोटर्स में पैठ बनाने में कामयाब होता है उसे विजयश्री उपहार स्वरूप मिल जाती है। वर्धा लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली इस विधानसभा में 2019 के आंकड़ों के अनुसार कुल 2 लाख 95 हजार तीन सौ इकत्तीस वोटर्स हैं। जिसमें 39 हजार 633 एससी वोटर्स हैं। जबकि 35 हजार 85 एसटी मतदाता भी उम्मीदवार के भाग्य का फैसला करते हैं। कुल वोट का करीब 66 फीसदी ग्रामीण वोटर्स हैं तो वहीं 34 प्रतिशत वोटर्स शहरी क्षेत्र के हैं।
हिंगणघाट सीट पर 2004 में हुई एनसीपी की जीत को छोड़ दें तो 1995 से लगातार शिवसेना और पिछली दो बार से बीजेपी का कब्जा है। लेकिन पहले शिवसेना और बीजेपी के दरम्यान रिश्ते कुछ और थे। अब शिवसेना टूट चुकी है, असली शिवसेना और नकली शिवसेना की जंग चल रही है। ऐसे में देखना होगा कि हिंगणघाट की जनता इस बार किसे असली होने का खिताब देती है। क्योंकि बीजेपी यहां शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के साथ गठबंधन में है। वहीं दूसरी तरफ शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस औऱ एनसीपी (शरद पवार) के साथ मिलकर चल रही है। ऐसे में 24 की लड़ाई काफी अहम होने वाली है।