प्राणपुर विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Pranpur Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच कटिहार जिले की प्राणपुर विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन गई है। 1977 में अस्तित्व में आई यह सीट पूरी तरह ग्रामीण है और प्राणपुर व आजमनगर प्रखंडों को मिलाकर बनी है। अब तक यहां 11 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।
प्राणपुर विधानसभा क्षेत्र पश्चिम बंगाल की मालदा सीमा से सटा हुआ है। कोशी और महानंदा की तलहटी में बसे इस इलाके की भूमि अत्यंत उपजाऊ है, जहां धान, मक्का, दाल, जूट और केले-पान की खेती होती है। हालांकि, बाढ़ की आशंका और औद्योगिक विकास की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए अन्य शहरों की ओर पलायन करते हैं।
इस सीट की जनसंख्या में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग आधी है, लेकिन अब तक केवल दो बार मुस्लिम उम्मीदवार जीत दर्ज कर सके हैं। 1980 में मोहम्मद शकूर और 1985 में मंगन इंसान कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए थे। यह दर्शाता है कि मुस्लिम वोटर यहां विभाजित रहे हैं, जिससे अन्य दलों को लाभ मिलता रहा है।
प्राणपुर के चुनावी इतिहास में जनता पार्टी और जनता दल का शुरुआती दबदबा रहा है। महेंद्र नारायण यादव ने इस सीट पर पांच बार जीत दर्ज की, जिनमें दो बार जनता दल और दो बार राजद से चुनाव जीते। यह दौर समाजवादी विचारधारा के प्रभाव का प्रतीक रहा, जब कांग्रेस का राज्यव्यापी वर्चस्व भी यहां चुनौती में था।
2000 से भाजपा ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की। विनोद कुमार सिंह ने 2000, 2010 और 2015 में जीत दर्ज की। उनके निधन के बाद 2020 में उनकी पत्नी निशा सिंह को टिकट मिला, जिन्होंने कांग्रेस के तौकीर आलम को बेहद कम अंतर से हराया। यह जीत भाजपा के संगठनात्मक आधार और परंपरागत वोट बैंक की ताकत को दर्शाती है।
हालांकि विधानसभा में भाजपा का दबदबा रहा है, लेकिन लोकसभा चुनावों में यह क्षेत्र आमतौर पर विपक्षी दलों के पक्ष में जाता रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तारिक अनवर ने जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी को हराकर यह संकेत दिया कि मतदाता रुझान विपक्ष की ओर मुड़ रहे हैं। महागठबंधन इस बढ़त को विधानसभा स्तर पर भुनाने की कोशिश में है।
प्राणपुर में मुस्लिमों के अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, यादव, ब्राह्मण और पासवान समुदायों की भी अच्छी खासी मौजूदगी है। ऐसे में जातीय और धार्मिक समीकरण चुनावी परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं। भाजपा परंपरागत वोटों के ध्रुवीकरण और संगठन की मजबूती के सहारे फिर से जीत की रणनीति बना रही है।
हाल के वर्षों में मतदाता सूची से बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और नाम हटाने की कोशिशों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में राजनीतिक हलचल पैदा की है। यह मुद्दा चुनावी विमर्श का हिस्सा बन सकता है और विभिन्न दलों की रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
प्राणपुर विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव बेहद करीबी और रोचक होने वाला है। भाजपा, जेडीयू, एलजेपी और कांग्रेस-राजद गठबंधन के बीच मुकाबला कड़ा होगा। हर वोट की अहमियत होगी और विजेता का फैसला कुछ हजार वोटों के अंतर से तय हो सकता है।
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प्राणपुर की सियासी लड़ाई इस बार न केवल दलों की ताकत की परीक्षा होगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि मुस्लिम बहुलता और सामाजिक विविधता के बीच कौन-सा दल जनता का भरोसा जीत पाता है। चुनावी नतीजे पूरे सीमांचल क्षेत्र की राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकते हैं।