मनिहारी विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Manihari Assembly Constituency: बिहार के कटिहार जिले की मनिहारी विधानसभा सीट आगामी चुनाव में राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन चुकी है। गंगा किनारे बसा यह क्षेत्र न केवल भौगोलिक रूप से विशिष्ट है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट 2025 के चुनावी समीकरणों में खास भूमिका निभाने वाली है।
मनिहारी की भौगोलिक बनावट इसे अन्य विधानसभा क्षेत्रों से अलग करती है। गंगा और महानंदा नदियों की उपजाऊ भूमि पर आधारित यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर टिकी है। धान, मक्का और जूट जैसी फसलें प्रमुख हैं, जबकि मछली पालन और नदी व्यापार भी आमदनी के स्रोत हैं। हर साल आने वाली बाढ़ और कटाव इस क्षेत्र को संकट में डालते हैं, जिससे स्थानीय जीवन प्रभावित होता है।
मनिहारी में दुग्ध उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है, हालांकि इसके सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। बाढ़ के समय लोग अपने मवेशियों को गंगा पार ले जाते हैं, जहां हरियाली और चारा की उपलब्धता बेहतर होती है। यह दृश्य किसी पशु मेले जैसा प्रतीत होता है, जो इस क्षेत्र की ग्रामीण जीवनशैली और पशुपालन परंपरा को दर्शाता है।
मनिहारी का सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, पांडवों ने अपने हथियार यहीं छुपाए थे। यह मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र का एकमात्र पहाड़ी इलाका है। मनिहारी गंगा घाट पर ‘तीसरी कसम’ और ‘बंदिनी’ जैसी फिल्मों की शूटिंग हुई थी, जो इसे सांस्कृतिक रूप से और भी खास बनाती है।
भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के संगम पर स्थित है। साहिबगंज से फेरी सेवा के जरिए जुड़ा मनिहारी बंदरगाह इसकी व्यापारिक और धार्मिक महत्ता को बढ़ाता है। नियमित गंगा आरती और छठ जैसे पर्वों पर लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति इसे धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाती है।
मनिहारी का संपर्क सड़क और रेल दोनों से बेहतर है। कटिहार जंक्शन से जुड़ा रेलवे स्टेशन उत्तर बंगाल और असम तक की कनेक्टिविटी प्रदान करता है। कटिहार–मनिहारी रोड इस क्षेत्र की जीवनरेखा है। पटना और सिलीगुड़ी से इसकी दूरी इसे रणनीतिक दृष्टि से भी अहम बनाती है।
गौरी शंकर मंदिर और शाही मस्जिद यहां के धार्मिक सौहार्द का प्रतीक हैं। गोगबिल झील और पीर मजार जैसे स्थल इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विशिष्ट बनाते हैं। हालांकि, नदी कटाव, खराब सड़कें, सीमित स्वास्थ्य सेवाएं और जनजातीय महिलाओं में कम साक्षरता जैसी समस्याएं अब भी चुनौती बनी हुई हैं।
1951 में स्थापित इस सीट पर अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है, जबकि समाजवादी विचारधारा वाले दलों ने दस बार बाजी मारी है। 2008 में एसटी आरक्षण लागू होने के बाद कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की है, जिससे उनका राजनीतिक आधार मजबूत माना जाता है।
मनिहारी की चुनावी तस्वीर में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका रही है। यादव, ब्राह्मण और पासवान समुदाय भी प्रभावशाली संख्या में मौजूद हैं। यह जातीय और धार्मिक समीकरण चुनावी परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं। समाजवादियों का शुरुआती प्रभुत्व और कांग्रेस का राज्यव्यापी वर्चस्व इस सीट के इतिहास में दर्ज है।
2024 के आंकड़ों के अनुसार, मनिहारी की जनसंख्या 4,96,124 है, जिसमें 3,02,010 मतदाता शामिल हैं। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी इस बार निर्णायक साबित हो सकती है। स्थानीय मुद्दों में बाढ़ नियंत्रण, सड़क सुधार, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा प्रमुख हैं।
यह भी पढ़ें: रक्सौल विधानसभा चुनाव 2025: भारत-नेपाल सीमा पर फिर NDA की परीक्षा, इनके बीच दिखेगी कांटे की जंग
अब देखना यह है कि क्या कांग्रेस अपनी जीत की हैट्रिक को आगे बढ़ा पाएगी या कोई नया चेहरा इस राजनीतिक किले को भेदने में सफल होगा। जेडीयू, भाजपा और राजद अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और जनता के बीच भरोसे की परीक्षा जैसा होगा। मनिहारी की सियासी लड़ाई इस बार भी पूरे बिहार के लिए संकेतक बन सकती है।