
बिहार विधानसभा चुनाव, 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Shahpur Assembly Constituency: बिहार के भोजपुर जिले की शाहपुर विधानसभा सीट इस बार फिर से राजनीतिक सरगर्मी का केंद्र बनी हुई है। यह सीट आरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और यहां का चुनावी मुकाबला हमेशा से ही दिलचस्प रहा है। शाहपुर को शाहाबाद का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र अपनी उपजाऊ भूमि और धान की बंपर पैदावार के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, गंगा और सोन नदियों के बीच बसे होने के कारण, इस इलाके को हर साल बाढ़ और कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है।
इस विधानसभा क्षेत्र में शाहपुर और बिहिया प्रखंड शामिल हैं। यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, जो आरा और बक्सर को आपस में जोड़ता है। जिला मुख्यालय आरा यहां से लगभग 30 किलोमीटर, बक्सर 40 किलोमीटर और राज्य की राजधानी पटना लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में शाहपुर से कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला दो प्रमुख उम्मीदवारों के बीच है।
राजनीतिक रूप से शाहपुर सीट को लंबे समय तक समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है। साल 1952 से 1969 तक, बिहार के पूर्व गृह मंत्री रामानंद तिवारी ने लगातार पांच बार इस सीट पर जीत हासिल करके अपनी मजबूत पकड़ स्थापित की थी। वहीं कांग्रेस को पहली बार इस सीट पर 1972 में सफलता मिली थी। राजद के उदय के बाद में 2000 और 2005 में राजद के टिकट पर शिवानंद तिवारी यहां से विधायक बने। इसके बाद, भाजपा की मुन्नी देवी ने लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज करके राजद के वर्चस्व को चुनौती दी।
हाल के चुनावों में इस सीट पर राजद का पलड़ा भारी रहा है। 2015 में, आरजेडी ने यह सीट दोबारा अपने कब्जे में ली और राहुल तिवारी विधायक बने। 2020 में भी, राहुल तिवारी ने भाजपा की मुन्नी देवी को हराकर दूसरी बार जीत हासिल की। अब राहुल तिवारी के पास जीत की हैट्रिक लगाने का मौका होगा, लेकिन भाजपा के राकेश रंजन उन्हें कड़ी टक्कर देने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
शाहपुर की राजनीति में यादव और ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। इन दोनों समुदायों के वोट बैंक का झुकाव ही अक्सर चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है। इसके अलावा, कुर्मी और राजपूत मतदाताओं की भी अच्छी-खासी संख्या है, जो चुनावी समीकरणों को प्रभावित करती है। सभी उम्मीदवार इन प्रमुख जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश में लगे हुए हैं।
चुनावी गहमागहमी के बीच, शाहपुर की धार्मिक विरासत भी इसे खास बनाती है। प्राचीन मंदिरों में यहाँ के महावीर स्थान और कुंडेश्वर धाम जैसे प्राचीन मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। वहीं बिलौती रोड पर स्थित मंदिर को बाणासुर से जुड़ा माना जाता है। इसके साथ ही सूफी संत की मजार भी दर्शनीय स्थलों में शामिल है। इसके अलावा, लकर शाह की मजार भी शाहपुर में बहुत प्रसिद्ध है, जो क्षेत्र की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दर्शाती है।
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अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘धान के कटोरे’ के मतदाता इस बार विकास, जातीय समीकरणों और उम्मीदवारों की व्यक्तिगत लोकप्रियता के आधार पर किसे अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।






