
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव राजनीति (डिजाइन फोटो)
Uttar Pradesh Politics: उत्तर प्रदेश की पॉलिटिक्स में ‘दो लड़कों की जोड़ी’ टूट गई है। बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश को लेकर एक बड़ा पॉलिटिकल फैसला लिया है। पंचायत चुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सपा के बीच रिश्ता खत्म हो गया है। पार्टी का यह फैसला बुधवार को यूपी कांग्रेस नेताओं और राहुल गांधी के बीच हुई मीटिंग के बाद आया है।
2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने मिलकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को सफलतापूर्वक हराया था। जिसके बाद यह माना जा रहा था कि समाजवादी पार्टी सपा और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन लंबे समय तक चलेगा। लेकिन अब पंचायत चुनाव से पहले दोनों पार्टियों ने अपने रास्ते अलग कर लिए हैं। कांग्रेस के यूपी इंचार्ज अविनाश पांडे ने कहा कि पार्टी आने वाले पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी।
हालांकि, समाजवादी पार्टी पहले ही यूपी पंचायत चुनाव लड़ने से पीछे हट चुकी है। फिर कांग्रेस ने सपा से अलग होकर पंचायत चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? ये सोचनीय है। इसके अलावा सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि एनडीए गठबंधन के साथी अपना दल (एस), निषाद पार्टी, आरएलडी और सुभासपा ने भी ऐलान किया है कि वे भाजपा से अलग होकर पंचायत चुनाव लड़ेंगे। इससे यह सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियां पंचायत चुनाव अलग-अलग क्यों लड़ना चाहती हैं?
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल से जुलाई 2026 के बीच होंगे और इसका प्रोसेस शुरू हो चुका है। उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधानों का टर्म 26 मई 2026 को खत्म हो रहा है, जबकि ब्लॉक प्रमुखों का टर्म 19 जुलाई 2026 को और जिला पंचायत अध्यक्षों का टर्म 11 जुलाई 2026 को खत्म हो रहा है।
अखिलेश यादव व राहुल गांधी (सोर्स- सोशल मीडिया)
इलेक्शन कमीशन ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत मेंबर, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत मेंबर (बीडीसी), ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत मेंबर और जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य में लगभग 57 हजार 694 ग्राम पंचायतें हैं जहां ग्राम प्रधान और पंचायत मेंबर चुने जाएंगे। इसके अलावा 74 हजार 345 बीडीसी सदस्यों के लिए चुनाव होने हैं, जो फिर ब्लॉक प्रमुखों का चुनाव करेंगे। लगभग 3,011 जिला पंचायत सदस्य सीटें हैं, जो फिर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करेंगी।
बुधवार को सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की मौजूदगी में यूपी कांग्रेस नेताओं के साथ एक मीटिंग हुई। मीटिंग के दौरान यह तय हुआ कि कांग्रेस यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। यूपी कांग्रेस इंचार्ज अविनाश पांडे ने कहा कि कांग्रेस यूपी पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ेगी। माना जा रहा है कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाना चाहती है।
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के गठबंधन को ‘दो लड़कों की जोड़ी’ बताया जा रहा था, लेकिन पंचायत चुनाव अकेले लड़ने के ऐलान के साथ ही अब यह जोड़ी टूट गई है। हालांकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अभी भी 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन के पक्ष में हैं, लेकिन पंचायत चुनाव ही बताएंगे कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन कितना टिकेगा।
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उत्तर प्रदेश में योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार तक अनुप्रिया पटेल की अपना दल और जयंत चौधरी की आरएलडी शामिल हैं। इसके अलावा संजय निषाद की निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन में हैं। वे सरकार के सहयोगी हैं, लेकिन भाजपा के चारों सहयोगी दलों ने उत्तर प्रदेश में आने वाले पंचायत चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
अनुप्रिया पटेल से लेकर जयंत चौधरी और संजय निषाद तक, सभी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के चीफ संजय निषाद और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने कई महीने पहले ही साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। एनडीए के चारों सहयोगी दलों ने भाजपा से साफ कह दिया है कि वे आने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अकेले लड़ेंगे।
यूपी पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव की रिहर्सल माना जा रहा है। यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़कर पार्टियों का मकसद अपनी पॉलिटिकल ताकत का अंदाजा लगाना और अपने कार्यकर्ताओं की चुनाव लड़ने की इच्छा पूरी करना है। दूसरा मकसद 2027 से पहले अपनी मोल-भाव की ताकत बढ़ाना है। पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते, लेकिन पार्टी जिला पंचायत सदस्य सीटों पर अपने नेताओं को उतारती रही है।
एनडीए गठबंधन उत्तर प्रदेश (सोर्स- सोशल मीडिया)
अलायंस में रहते हुए पॉलिटिकल पार्टियों के लिए पंचायत चुनाव में अपने कार्यकर्ताओं को उतारना नामुमकिन था, इसलिए उन्होंने अकेले लड़ने की स्ट्रेटेजी अपनाई है। इस तरह पॉलिटिकल पार्टियों को अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ाकर अपने संगठन की ताकत का अंदाजा हो जाता है। यूपी पंचायत चुनाव अगले साल की शुरुआत में होंगे।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि इसके ठीक बाद पंचायत चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश की दो-तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाकों से आती हैं, जहां पंचायत चुनाव होते हैं। राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीतिक ताकत का अंदाज़ा लगाने के लिए पंचायत चुनावों का इस्तेमाल करती हैं। उत्तर प्रदेश में औसतन चार से छह जिला पंचायत सदस्य एक विधानसभा क्षेत्र बनाते हैं। इसीलिए सभी पार्टियां अपनी ताकत का अंदाज़ा लगाना चाहती हैं।
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राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिला पंचायत सदस्यों को मिले वोटों के आधार पर राजनीतिक पार्टियों को अपनी हैसियत का अंदाज़ा होता है। इससे 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों की तुलना में उनके संभावित वोट शेयर का भी पता चलता है। अपना दल का उत्तर प्रदेश में असर है, जहां पार्टी की मुख्य रूप से कुर्मी समुदाय के बीच मज़बूत पकड़ है। ऐसे में वह देखना चाहेगी कि उसका असर बरकरार है या नहीं।
पंचायत चुनावों का इस्तेमाल वोटों के तालमेल को एडजस्ट करने के लिए किया जाता है। राजनीतिक पार्टियां भी इसे समझती हैं और क्षेत्रवार और जातिवार फैक्टर के आधार पर अपनी भविष्य की रणनीतियों का अंदाज़ा लगाती हैं। उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के आधार पर 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक ज़मीन हासिल करना चाहता है, इसलिए सभी पार्टियों ने, चाहे उनका कोई भी गठबंधन हो, अपनी राजनीतिक कसरत शुरू कर दी है।
पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वालों का 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भी रास्ता साफ हो जाएगा। इसका मतलब है कि कई पंचायत जीतने वालों को पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बना सकती है। इस रणनीति को राजनीतिक मोलभाव की ताकत बढ़ाने के लिए माना जा रहा है। गठबंधन के सहयोगियों की यह रणनीति कितना काम आएगी यह तो विधानसभा चुनाव के वक्त ही पता चल पाएगा।






