रोसड़ा विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Rosera Assembly Constituency Profile: बिहार के समस्तीपुर जिले की रोसड़ा विधानसभा सीट (एससी-सुरक्षित) राज्य की राजनीति में एक विशेष स्थान रखती है। यह सीट न केवल चुनावी परिणामों के लिहाज से, बल्कि अपने वैचारिक इतिहास और सामाजिक समीकरणों के कारण भी चर्चा में रहती है। दशकों तक यह क्षेत्र वामपंथी विचारधारा का गढ़ रहा, लेकिन पिछले एक दशक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने यहां अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव रोसड़ा की राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित हुआ। भाजपा उम्मीदवार वीरेंद्र पासवान ने कांग्रेस के नागेंद्र कुमार पासवान विकल को 35,744 वोटों के बड़े अंतर से हराया। यह जीत न केवल भाजपा की ताकत को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि मतदाता इस सीट पर भाजपा के पक्ष में एकजुट हुए।
वीरेंद्र पासवान को कुल 47.93 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा होते हुए भी केवल 28.27 प्रतिशत वोट ही जुटा सकी। वहीं, लोजपा के कृष्ण राज ने 22,995 वोट (12.64 प्रतिशत) प्राप्त कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। यह आंकड़े भाजपा की मजबूत पकड़ और विपक्ष की बिखरी रणनीति को उजागर करते हैं।
रोसड़ा का चुनावी इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 1977 से अब तक भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) दोनों ने चार-चार बार इस सीट पर जीत दर्ज की है। यह दर्शाता है कि यहां के मतदाता वैचारिक रूप से कभी वामपंथ की ओर झुके रहे, लेकिन अब दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर रुख कर चुके हैं।
2010 में भाजपा की मंजू हजारी ने 12,119 वोटों के करीबी अंतर से जीत दर्ज की थी, जो भाजपा के उदय का संकेत था। 2015 में कांग्रेस के डॉ. अशोक कुमार ने 85,506 वोटों के साथ 34,361 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। लेकिन 2020 में यह समीकरण पूरी तरह बदल गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रोसड़ा का मतदाता किसी एक पार्टी के प्रति स्थायी रूप से वफादार नहीं है।
यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जहां पासवान और रविदास समुदाय की निर्णायक भूमिका है। 2020 में दोनों प्रमुख उम्मीदवार पासवान समुदाय से थे, जो इस समुदाय के राजनीतिक महत्व को दर्शाता है। दलित अस्मिता, आरक्षण और स्थानीय विकास यहां के प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं।
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महागठबंधन का इस क्षेत्र में दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर पारंपरिक प्रभाव रहा है। लेकिन भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से इस आधार को चुनौती दी है। यही वजह है कि भाजपा ने यहां अपनी जड़ें मजबूत की हैं।
रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र वामपंथी अतीत और वर्तमान भगवा प्रभाव के बीच एक राजनीतिक पुल की तरह है। यह वह क्षेत्र है जहां वामपंथ ने अपनी पकड़ खोई और भाजपा ने उसे मजबूती से थाम लिया।
आगामी चुनाव में महागठबंधन के लिए यह सीट दोबारा हासिल करना आसान नहीं होगा। उन्हें भाजपा की मजबूत पकड़ को तोड़ने के साथ-साथ दलित वोटों के बिखराव को भी रोकना होगा। रोसड़ा की राजनीति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या महागठबंधन अपनी विश्वसनीयता फिर से स्थापित कर पाता है या भाजपा अपनी जीत की लय को बरकरार रखती है।