नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव, फोटो - सोशल मीडिया
नवभारत डिजिटल डेस्क : महज 5 महीने के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। इसे लेकर बिहार की सियासी गलियारों में मानों जैसे भूचाल आ गया है। एनडीए गठबंधन से लेकर महागठबंधन तक चुनावी तैयारियों में जुट हए हैं। ऐसे में बिहार चुनाव को लेकर कई सारे सर्वे होने शुरू हो चुके हैं। इस बीच इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एक नई ओपिनियन पोल ने सकबो चौंका दिया है।
दरअसल, रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स ने एक ओपिनियन पोल जारी किया है। इस ओपिनियन पोल में बताया गया है कि बिहार में किसकी सरकार बन सकती है? मुख्यमंत्री के लिए जनता की पहली पसंद कौन है? बता दें, बिहार में कुल 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव होना है।
रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स द्वारा किए गए एक ओपिनियन पोल में बताया गया है कि इस बार बिहार की 28 प्रतिशत जतना राष्ट्रीय जनता दल (RJD) वोट दे सकती है। वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 25% लोग वोट दे सकते हैं। इसके साथ ही जनता दल यूनाइटेड (JDU) को 16 प्रतिशत जनता अपना जनादेश दे सकता है। कांग्रेस (INC) को इस बार के बिहार के 7% लोग अपना जनादेश देने के फिराक में हैं।
इसके साथ ही इस ओपिनियन पोल में बताया गया है कि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को बिहार के 5% लोग अपना मत दे सकते हैं। अन्य दल की बात करें, तो इन्हें बिहार की 16 प्रतिशत जनता अपना जनादेश दे सकती है। बता दें, अन्य दलों में जनसुराज, वाम दल, VIP, हम आदि शामिल हैं। वहीं बिहार में 3% लोग ऐसे भी हैं, जिन्हेंने उत्तर ही नहीं दिया। इस आंकड़े से संकेत मिलता है कि RJD को बढ़त मिल सकती है, जबकि BJP और JDU को पिछली बार की तुलना में कम समर्थन मिल सकता है।
रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स की ओपिनियन पोल में बताया गया है कि मौजूदा नीतीश कुमार की सरकार से 42% लोग संतुष्ट हैं। वहीं 16% लोग ऐसे हैं, जो कुछ-कुछ संतुष्ट हैं। बिहार में 40% लोग ऐसे भी हैं, जो नीतीश कुमार के कार्यकाल से संतुष्ट नहीं हैं। इस ओपिनियन पोल में 2% लोगों ने कहा है कि इस बारे में कुछ कह ही नहीं सकते। इस आंकड़ों से यह पचा चलता है कि जनता का एक बड़ा हिस्सा मौजूदा सरकार से संतुष्ट नहीं है।
इन आकंड़ों से यह साफ पता चलता है कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए जनता की पहली पसंद बनकर उभर रहे हैं। पर यहां हम आपको बताना चाहेंगे कि ओपिनियन पोल के आंकड़ों पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये ओपिनियन पोल चुनाव के कुछ महीने पहले कराए जाते हैं। इसमें हिस्सा लेने वाले लोग अपना मूड वर्तमान स्थिति को देखते हुए बताते हैं, जो चुनाव के करीब आते-आते बदल भी जाते हैं।