प्रशांत किशोर और चिराग पासवान, फोटो - सोशल मीडिया
नवभारत डिजिटल डेस्क : बिहार का राजनीतिक समीकरण हर पल बदलता रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जनसुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर की राजनीति आजकल स्पॉटलाइट बनी हुई है। सवाल यह है कि क्या ये दोनों नेता एक ही राजनीतिक मंच पर आ सकते हैं? या फिर ये बस विचारों की समानता तक सीमित रहेंगे?
बता दें, प्रशांत किशोर की राजनीति पूरी तरह से नीतीश कुमार और लालू यादव के खिलाफ खड़ी है। वे बिहार में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली से सबसे ज्यादा आहत हैं और उसमें क्रांतिकारी बदलाव की बात कर रहे हैं। वहीं, चिराग पासवान भी “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” के नारे के साथ राज्य को विकास की नई राह पर ले जाने की बात करते दिख रहे हैं। इन दोनों नेताओं की सोच में कई बिंदु ऐसे हैं जहां ये एक जैसे नजर आते दिख रहे हैं।
नीतीश सरकार की शराबबंदी नीति दोनों नेताओं को रास नहीं आती। पीके कहते हैं कि अगर उनकी सरकार बनी तो एक घंटे में यह कानून खत्म कर देंगे। चिराग पासवान भी शराबबंदी की कड़ी आलोचना कर चुके हैं। उनका कहना है कि शराब की होम डिलीवरी हो रही है और गरीब लोग जेल में सड़ रहे हैं, जबकि असली माफियाओं की चांदी हो रही है।
बीपीएससी परीक्षा विवाद पर भी दोनों नेता एक मंच पर नजर आए। चिराग पासवान ने न केवल पीके के आंदोलन का समर्थन किया, बल्कि खुद भी दोबारा परीक्षा लेने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि एक परीक्षा में दो बार छात्रों को शामिल करना अन्याय है और यह गलत परंपरा की शुरुआत होगी।
जन सुराज के मुखिया प्रशांत किशोर खुलकर कह चुके हैं कि वह चिराग पासवान के प्रति नरम रवैया रखते हैं, जबकि नीतीश और लालू के खिलाफ उनके तेवर काफी सख्त हैं। चिराग भी जातिवाद की राजनीति से दूर रहकर विकास की बात करते हैं, जिससे पीके के नजरिए को बल मिलता है।
अगर वोट बैंक की बात करें तो उपचुनाव में पीके को 8-10 प्रतिशत वोट मिल पाया थी, जबकि चिराग पासवान का वोट बैंक करीब 6-7 प्रतिशत है। नीतीश कुमार करीब 16 प्रतिशत वोट के साथ चुनावी मैदान में बने हुए हैं। ऐसे में अगर चिराग भाजपा से अलग होते हैं और पीके के साथ आते हैं, तो बिहार में एक नया तीसरा राजनीतिक कोण बन सकता है।
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हालांकि प्रशांत किशोर ने साफ कहा है कि जब तक चिराग भाजपा के साथ हैं, उनके साथ जाना संभव नहीं। लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। विचारों की समानता और साझा मुद्दों पर स्टैंड लेना इशारा कर रहा है कि भविष्य में पीके और चिराग एक मंच पर साथ आ सकते हैं। बिहार की सियासत में यह एक बड़ा बदलाव हो सकता है।