कपिल सिब्बल (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्लीः बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) को लेकर देश का सियासी माहौल गर्म है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ विपक्ष का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील व राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने स्पेशल वोटर लिस्ट रिवीजन को NRC (National Register of Citizens) का दूसरा तरीका बताया है। इतना ही नहीं सिब्बल ने केंद्र सरकार पर तानाशाही का आरोप भी मढ़ा है।
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि भाजपा और चुनाव आयोग में पार्टनरशिप है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में वोट अचानक से बढ़े थे, लेकिन बिहार में स्पेशल वोटर लिस्ट रिवीजन से वोटर घटेंगे। सिब्बल की तरह ही विपक्षी दलों के नेताओं ने भी वोटर लिस्ट से करोड़ों वोटरों के नाम कटने की आशंका जाहिर की है।
NRC वापिस लाने का नया तरीका
इसके आगे सिब्बल ने बताया कि कहा जा रहा है कि यह एक पायलट प्रोजेक्ट है। लेकिन यह एनआरसी वापस लाने का एक और तरीका है। भाजपा की तरफ इशारा करते हुए कहा कि भारत में बहुसंख्यक शासन लागू करना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि भारत में कोई और सत्ता में आए। महाराष्ट्र में उन्होंने वोटों की संख्या बढ़ाई और यहां वे उन्हें कम कर रहे हैं। मेरा आरोप है कि चुनाव आयोग और भाजपा बीच एक साझेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिया सुझाव
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूचियों के स्पेशल वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) अभियान को जारी रखने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन चुनाव आयोग से कहा कि वह बिहार में मतदाता सूचियों की एसआईआर के दौरान मतदाता पहचान साबित करने के लिए आधार, राशन कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र को स्वीकार्य दस्तावेज़ के रूप में अनुमति देने पर विचार करे।
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चुनाव आयोग को देना होगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “हमारा प्रथम दृष्टया मत है कि न्याय के हित में, चुनाव आयोग आधार, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र आदि जैसे दस्तावेज़ों को भी शामिल करे। यह चुनाव आयोग को तय करना है कि वह इन दस्तावेज़ों को स्वीकार करना चाहता है या नहीं। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो इसका कारण बताए। जो याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त होंगे। इस बीच याचिकाकर्ता अंतरिम रोक के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं।”
सुप्रीम कोर्ट SIR के समय पर उठाया था सवाल
इसके अलावा कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात को भी रेखांकित किया कि बिहार विधानसभा चुनाव बहुत कम समय बचा है। इसलिए प्रक्रिया का समय पर सवाल उठ रहा है। क्योंकि तीन महीने वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए पर्याप्त नहीं नहीं है।