
गरखा विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Gorkha Assembly Constituency: बिहार के सारण जिले का गरखा विधानसभा क्षेत्र (Garkha Assembly Seat) न सिर्फ अपने सूर्य मंदिर की सांस्कृतिक और धार्मिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अनुसूचित जाति की कम संख्या के बावजूद इसकी आरक्षित सीट की स्थिति इसे एक अनूठा और चर्चित विधानसभा क्षेत्र बनाती है। गंडकी नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और जटिल चुनावी गतिशीलता के लिए जाना जाता है।
गरखा की पहचान यहाँ के नरांव में स्थित सूर्य मंदिर से है, जो अपनी भव्यता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए बिहार समेत अन्य राज्यों में सुप्रसिद्ध है।
भव्यता: यह मंदिर अपने भव्य स्वरूप के कारण उत्तर बिहार में विशेष तौर पर प्रसिद्ध है। गंडकी नदी में जब पानी का बहाव रहता है, तब यह मंदिर और भी मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
धार्मिक केंद्र: मंदिर के समीप कैलाश आश्रम में भगवान महादेव विराजमान हैं, और महादेव के सामने सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार श्रद्धालुओं का मन मोह लेते हैं।
छठ पूजा: विशेषकर छठ पूजा के दौरान, यह सूर्य मंदिर उत्तर बिहार के सबसे बड़े सूर्य मंदिरों में से एक बन जाता है, जहाँ खास पूजा-अर्चना की जाती है।
गरखा विधानसभा क्षेत्र सारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। वर्तमान में इस सीट से राजद के सुरेंद्र राम विधायक हैं, और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उनके सामने सीट बचाने की चुनौती है।
आरक्षण की विसंगति: गरखा विधानसभा क्षेत्र का आरक्षण एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यहाँ अनुसूचित जाति की आबादी मात्र लगभग 13.69 प्रतिशत है, जबकि बिहार में कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में यह आबादी 20 प्रतिशत से अधिक होने के बावजूद वे सामान्य सीटें हैं। यह विसंगति राजनीतिक विमर्श का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहती है।
इतिहास: गरखा विधानसभा क्षेत्र हमेशा से आरक्षित नहीं था। इसकी स्थापना 1957 में हुई थी, और इसे 1967 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया। 2008 के परिसीमन में भी इस सीट की स्थिति अपरिवर्तित रही।
परिसीमन के बाद गरखा विधानसभा क्षेत्र में गरखा सामुदायिक विकास खंड के साथ-साथ छपरा सामुदायिक विकास खंड की 14 ग्राम पंचायतें शामिल कर दी गई हैं, जिससे इस सीट का राजनीतिक आधार व्यापक हो गया है।
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बिहार चुनाव 2025 में, राजद के लिए अपने विधायक सुरेंद्र राम की जीत को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि आरक्षण के विरोधाभास और अन्य जातीय समूहों की बढ़ती गोलबंदी के कारण यह सीट हमेशा कड़े मुकाबले की ओर अग्रसर रहती है।






