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Bihar Politics: बिहार में चुनावी महाभारत का अनौपचारिक शंखनाद हो चुका है। एक तरफ नीतीश कुमार रोजाना नई घोषणाएं कर कुर्सी पर पकड़ बनाए रखने की कवायद में जुटे हुए हैं, दो दूसरी तरफ पीएण मोदी सूबे को विकास के सौगात देकर एनडीए के पक्ष में सियासी माहौल बना रहे हैं। लेकिन इस सब के इतर ‘मोदी के हनुमान’ की सियासी मांग एनडीए के लिए चिंता का सबब बन गई है।
चिराग पासवान की डिमांड के कारण ही बीजेपी और जेडीयू के खेमें में अंधेरा छाया हुआ है। लेकिन पासवान के साथ-साथ दलित और अति पिछड़े वोटर्स- जिनमें चिराग की पैठ अच्छी खासी है, उनको अपने पाले में बनाए रखने के लिहाज से भी एनडीए के लिए बिहार में चिराग का साथ जरूरी है।
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में भाजपा, चिराग पासवान की लोजपा (आर), जीतन राम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल हैं। इस प्रकार, एनडीए गठबंधन का स्वरूप तो तय हो गया है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर अभी सहमति नहीं बन पाई है।
सूत्रों की मानें तो भाजपा और जदयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमत हो गए हैं, लेकिन चिराग पासवान ने 40 सीटों की मांग करके राजनीतिक तनाव पैदा कर दिया है। चिराग की मांग के अनुसार सीटें देना असंभव सा लग रहा है। ऐसे में उनके खाते में 20 से 25 सीटें ही आ सकती हैं, क्योंकि भाजपा-जदयू को मांझी और कुशवाहा को सीटें देनी हैं।
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, जिनमें से अगर भाजपा और जदयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ती हैं, तो उन्हें 100 से 105 सीटें मिल सकती हैं। इस लिहाज से दोनों दलों के बीच 200 से 210 सीटों का बंटवारा होगा, क्योंकि भाजपा और जदयू दोनों ही किसी भी हालत में 100 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे।
चिराग पासवान व नरेन्द्र मोदी (सोर्स- सोशल मीडिया)
इसकी वजह यह है कि 2020 में जदयू ने 115 और भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस लिहाज से अगर भाजपा और जदयू पिछले चुनाव से कम सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमत होते हैं, तो एनडीए के बाकी तीन घटक दलों के बीच 33 से 43 सीटें बंट जाएंगी।
चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 40 सीटों की मांग की है, जो पूरी नहीं हो सकती। ऐसे में माना जा रहा है कि एनडीए में चिराग पासवान को 20 से 25 सीटें ही मिल सकती हैं, क्योंकि बाकी सीटें जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दी जा सकती हैं। माना जा रहा है कि पांच से सात सीटें मांझी और दो से चार सीटें कुशवाहा को मिल सकती हैं।
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। 2020 में जब उन्हें मनमुताबिक सीटें नहीं मिलीं, तो चिराग ने एनडीए से नाता तोड़ लिया और अलग चुनाव लड़ा। लोजपा ने 2020 के चुनाव में 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से उसने जदयू की सभी सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि भाजपा के खिलाफ उसने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा।
चिराग पासवान के कारण नीतीश कुमार को काफी नुकसान उठाना पड़ा और जदयू महज 43 सीटों पर सिमट गई। वहीं, भाजपा 74 सीटें जीतने में सफल रही। इस तरह बिहार में भाजपा जदयू के बड़े भाई के रूप में उभरी। जदयू के खराब प्रदर्शन की वजह लोजपा द्वारा उसके खिलाफ उम्मीदवार उतारना था।
लोजपा के पास अभी भी बिहार का लगभग 10 प्रतिशत वोट शेयर है। चिराग का राजनीतिक आधार दलितों और अति पिछड़े वर्गों में है। भाजपा 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ने जा रही है, लेकिन जदयू से कम सीटों पर लड़ने का सवाल ही नहीं उठता। ऐसे में लोजपा 40 सीटों की मांग कर रही है, जिसे पूरा करना भाजपा और जदयू के लिए आसान नहीं है।
चिराग पासवान व नीतीश कुमार (सोर्स- सोशल मीडिया)
राज्य में लोजपा के पांच सांसद हैं, जिसे देखते हुए उनके हिस्से में केवल 20 विधानसभा सीटें आने का फॉर्मूला है। लोजपा ने तर्क दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन शत-प्रतिशत रहा है। वह एनडीए के तहत लड़ी गई सभी पांच सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही है और उसे 6 प्रतिशत वोट मिले हैं।
इस लिहाज से पांचों लोकसभाओं की 30 विधानसभा सीटों में से 29 पर उसे बढ़त हासिल थी। इसी फॉर्मूले के तहत लोजपा 40 सीटों की मांग कर रही है, जो न तो जदयू और न ही भाजपा देने को तैयार है। ऐसे में चिराग इस मांग के कारण एनडीए के गले की फांस बन गए हैं।
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चिराग पासवान एनडीए के तहत 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, जिसे पूरा करना जेडीयू और बीजेपी के लिए किसी भी हाल में संभव नहीं है। लेकिन एनडीए में चिराग पासवान की पार्टी को 20 से 25 सीटें मिल सकती हैं। इसके पीछे कारण यह है कि 2020 में एलजेपी ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे सिर्फ एक सीट मटिहानी पर जीत मिली थी, लेकिन जेडीयू की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था।
चिराग पासवान का जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला ‘हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे’ जैसा साबित हुआ। चिराग की पार्टी 64 सीटों पर तीसरे या उससे नीचे रही, जहां उसे जीत से ज़्यादा वोट मिले। इनमें से 27 सीटों पर जेडीयू को सीधा नुकसान हुआ। हालांकि, एनडीए ने बहुत मामूली बढ़त के साथ बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया।
दरअसल, बीजेपी को लगता है कि अगर चिराग पासवान एनडीए छोड़ते हैं, तो वह महागठबंधन का हिस्सा भले ही न बनें, लेकिन अगर वह प्रशांत किशोर की पार्टी से हाथ मिला लेते हैं, तो पूरा खेल बदल जाएगा। इसके अलावा, अगर वह किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होते हैं और अकेले चुनाव लड़ते हैं, तो पिछली बार की तरह वोटकटवा साबित हो सकते हैं।
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इन दोनों समीकरणों को ध्यान में रखें तो चिराग पासवान एनडीए के लिए जोखिम भरे साबित हो सकते हैं। इसके साथ तीसरा और एक अहम कारण यह है कि चिराग के पास पांच लोकसभा सांसद हैं। केन्द्र में सरकार को मजबूत रखने के लिए बीजेपी उनको एनडीए से अलग करना नहीं चाहेगी।