निर्मली विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Nirmali Vidhansabha Seat Profile: निर्मली विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और 1952 में कांग्रेस ने यहां पहली जीत दर्ज की थी। इसके बाद यह सीट लंबे समय तक अस्तित्व में नहीं रही। 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट दोबारा अस्तित्व में आई और 2010 से यहां नियमित चुनाव होने लगे। जदयू ने इस मौके को भुनाया और लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल की।
विधानसभा में जदयू की मजबूत स्थिति का असर लोकसभा चुनाव 2024 में भी देखने को मिला। सुपौल लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली निर्मली विधानसभा से जदयू के दिलेश्वर कामैत को बड़ी बढ़त मिली, जिसने उनकी जीत को सुनिश्चित किया। यह दर्शाता है कि जदयू का जनाधार यहां स्थायी रूप से मजबूत बना हुआ है।
निर्मली विधानसभा क्षेत्र राघोपुर और सरायगढ़ भपटियाही प्रखंडों से घिरा हुआ है। नेपाल सीमा के करीब स्थित यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी अहम है। नेपाल का प्रमुख शहर विराटनगर यहां से मात्र 50 किलोमीटर उत्तर में है, जिससे सीमावर्ती गतिविधियों और व्यापार पर इसका प्रभाव पड़ता है।
निर्मली की सबसे बड़ी समस्या बार-बार आने वाली बाढ़ है। कोसी नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र को 1934 के भूकंप और 2008 के तटबंध टूटने जैसी घटनाओं ने भारी नुकसान पहुंचाया है। बाढ़ के साथ-साथ जमीन विवाद भी यहां की प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं, जो विकास कार्यों को बाधित करते हैं।
निर्मली में सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति चिंताजनक है। स्कूलों और अस्पतालों में संसाधनों और कर्मचारियों की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। कृषि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का आधार है, जहां धान, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं, लेकिन बाढ़ के कारण खेती भी प्रभावित होती है।
2020 के विधानसभा चुनाव में निर्मली में कुल 2,96,989 पंजीकृत मतदाता थे। इनमें 17.30% मुस्लिम, 13.88% अनुसूचित जाति और बड़ी संख्या में यादव समुदाय के मतदाता शामिल हैं। यादव समुदाय यहां चुनावी समीकरण में निर्णायक भूमिका निभाता है। 2020 में इस सीट पर 63.20% मतदान दर्ज किया गया था, जो राजनीतिक सक्रियता को दर्शाता है।
यह भी पढ़ें: ‘बिहार में आतंक की वापसी’, गैंगस्टर शहाबुद्दीन के बेटे को टिकट देने पर भड़के शिवेसना नेता निरुपम
निर्मली में जदयू की लगातार जीत ने विपक्ष के लिए राह कठिन बना दी है। हालांकि, स्थानीय मुद्दों जैसे बाढ़, बुनियादी सुविधाओं की कमी और रोजगार की समस्या को लेकर विपक्षी दल जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। 2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या विपक्ष इस गढ़ में सेंध लगा पाता है या जदयू एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखता है।