
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार की राजनीति में एक समृद्ध और ऐतिहासिक विरासत रखने वाली कायस्थ बिरादरी इस बार के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर उपेक्षा का शिकार हुई है। वह बिरादरी जिसने बिहार को दो मुख्यमंत्री दिए। साथ ही देश को पहला राष्ट्रपति और संविधान सभा का अध्यक्ष भी दिया है। इसके अलावा संपूर्ण क्रांति जैसे बड़े आंदोलन के प्रणेता भी दिए, लेकिन आज वह समाज चुनावी टिकटों के मामले में संख्या बल और वोट बैंक की राजनीति के सामने गौण हो गया है। इसका प्रमाण टिकट वितरण व चुनावी भागीदारी में साफ दिख रहा है।
इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बार के चुनाव में दोनों प्रमुख गठबंधनों (सत्ताधारी गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन) ने मिलकर कायस्थ बिरादरी से जुड़े उम्मीदवारों को महज तीन सीटों पर ही मौका दिया है। यह संख्या राज्य की कुल आबादी में बिरादरी के प्रतिनिधित्व के एक प्रतिशत से भी कम है। आंकड़ों पर गौर करें तो, इस चुनाव में सवर्ण बिरादरी के कुल 124 उम्मीदवारों को मौका दिया गया है।
सत्ताधारी खेमे ने सवर्ण बिरादरी के 85 लोगों को टिकट दिए, जिनमें कायस्थ बिरादरी से मात्र दो उम्मीदवार हैं। वहीं, विपक्षी महागठबंधन ने सवर्ण बिरादरी के 39 लोगों को टिकट दिए हैं, जिनमें कायस्थ बिरादरी की इकलौती उपस्थिति है। दोनों गठबंधनों में शामिल लगभग नौ अन्य दलों ने इस बिरादरी को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है, जिससे इसका कुल प्रतिनिधित्व शून्य के करीब पहुंच गया है।
सत्ताधारी गठबंधन की बात करें तो, भारतीय जनता पार्टी ने इस बार अपनी पिछली विधानसभा में चुने गए दो प्रमुख कायस्थ विधायकों के टिकट काट करके अरुण सिन्हा और रवि वर्मा को बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी ने केवल नितिन नवीन को एकमात्र टिकट दिया है, जो फिलहाल नीतीश सरकार में मंत्री हैं। वहीं जनता दल यूनाइटेड ने भी इस बिरादरी से केवल एक उम्मीदवार को टिकट दिया है।
विपक्षी महागठबंधन में स्थिति और भी निराशाजनक है। यहां सिर्फ कांग्रेस पार्टी ने गया शहर से मोहन श्रीवास्तव को इकलौता उम्मीदवार बनाया है। महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद), तीन वाम दल और अन्य सहयोगी पार्टियां (जैसे लोजपा, आरएलएसपीएम और हम) ने इस बिरादरी को प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व भी नहीं दिया है, जिससे यह साफ संकेत है कि कायस्थ को यहां के राजनेता अब उतना महत्व नहीं देना चाहते हैं, जितना कभी कांग्रेस के जमाने में दिया जाता था।
यह उपेक्षा तब हो रही है जब इस बिरादरी का राज्य की राजनीति में एक गौरवशाली इतिहास रहा है। यह बिरादरी 1990 के मंडल-राजनीति के उभार से पहले तक राज्य की सियासत का केंद्र रही है। कायस्थ बिरादरी से केबी सहाय लगभग चार साल और महामाया प्रसाद सिन्हा कुछ महीनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रहे। महामाया प्रसाद सिन्हा 1967 में कृषक मजदूर पार्टी के इकलौते विधायक होते हुए भी नाटकीय घटनाक्रम में सीएम बने थे।
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इसके अलावा, इसी बिरादरी से डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष थे। वहीं, जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान करके पहली बार केंद्र से कांग्रेस को सत्ता से हटाने में अहम भूमिका निभाई थी। आज के राजनीतिक हालात की बात करें तो राजनीतिक दलों ने संख्या बल के समीकरणों को साधते हुए इस प्रमुख और समृद्ध बिरादरी की ऐतिहासिक विरासत को दरकिनार कर दिया है, जिससे कायस्थ समाज में मायूसी का माहौल है और यह समाज अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहा है।






