
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Fatuha Assembly Constituency: पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली फतुहा विधानसभा सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है जहां पिछले एक दशक से अधिक समय से एक ही नेता का दबदबा कायम है। 1957 में स्थापित यह सीट न सिर्फ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और औद्योगिक पहचान के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां की राजनीति पूरी तरह से जातिगत गोलबंदी और सामाजिक समीकरणों पर टिकी हुई है।
फतुहा की चुनावी कहानी पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दिग्गज नेता डॉ. रामानंद यादव के इर्द-गिर्द घूम रही है। लगातार तीन चुनावों में उन्हें जीत मिली है। रामानंद यादव ने 2010 में पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया और तब से उनका विजय रथ थमा नहीं है। वह लगातार तीन बार (2010, 2015 और 2020) जीत दर्ज कर चुके हैं और 2025 में चौथी बार जीत का चौका लगाने के लिए मैदान में हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार रामानंद यादव ने भाजपा के सत्येंद्र सिंह को 19,370 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इससे पहले 2015 में भी उन्होंने 30,402 वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल की थी। 2010 के बाद से भाजपा नीत एनडीए गठबंधन इस सीट पर अपनी पकड़ वापस नहीं जमा सका है, जबकि उसने बार-बार उम्मीदवार बदले हैं।
फतुहा एक सामान्य सीट होने के बावजूद, यहां के चुनावी नतीजे पूरी तरह से सामाजिक समीकरणों पर आधारित होते हैं। 2020 के आंकड़ों के अनुसार, कुल मतदाताओं में अनुसूचित जाति (SC) की हिस्सेदारी करीब 18.59 प्रतिशत है, जो चुनाव परिणाम पर निर्णायक असर डालती है। यहां की राजनीति जातिगत गोलबंदी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें राजद का पारंपरिक आधार प्रमुख भूमिका निभाता है।मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 2020 में मात्र 1.4 प्रतिशत थी, जो इस बात का संकेत है कि यहां की राजनीति MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण से ज्यादा, यादव और अन्य पिछड़ी जातियों की लामबंदी पर निर्भर करती है।
इस बार के चुनाव में राजद प्रत्याशी रामानंद यादव का मुकाबला मुख्य रूप से लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार रूपा कुमारी से होने वाला है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या चिराग पासवान की पार्टी राजद के इस अभेद्य किले में सेंध लगा पाती है या रामानंद यादव अपना वर्चस्व बरकरार रखते हैं।
फतुहा का महत्व सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ मिथिला यात्रा के दौरान यहीं से गंगा पार की थी। यह स्थल बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम सहित सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए समान रूप से पूजनीय रहा है। संत कबीर का मठ और कच्ची दरगाह इसका प्रमाण है।
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‘फतुहा’ नाम पारंपरिक वस्त्र निर्माण करने वाली ‘पटवा’ जाति से आया है, जिसने इसे कुटीर उद्योगों का केंद्र बनाया था। आज यहां ट्रैक्टर निर्माण इकाई और एलपीजी बॉटलिंग प्लांट जैसी आधुनिक इकाइयां बिहार के औद्योगिक पुनरुद्धार की नई उम्मीदें जगा रही हैं। फतुहा सीट 2025 के चुनाव में भी राजद के गढ़ को बचाने और एनडीए के लिए इसे तोड़ने की एक कांटे की लड़ाई का गवाह बनेगी।






