
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bochahan Assembly Constituency: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की बोचहां विधानसभा सीट (अनुसूचित जाति आरक्षित), अपनी कृषि प्रधान ग्रामीण पहचान और जटिल सामाजिक-राजनीतिक इतिहास के कारण बिहार की राजनीति में एक अलग स्थान रखती है। यह सीट दशकों तक दलित राजनीति के दिग्गज रमई राम का गढ़ रही है और अब उनके बेटे अमर पासवान के सामने इस विरासत को आगे बढ़ाने की बड़ी चुनौती है।
बोचहां सीट पर रमई राम ने 1972 से 2010 तक लगातार जीत हासिल की, जिससे यह सीट राज्य की दलित राजनीति के केंद्र में आ गई थी।2020 में रमई राम की हार के बाद, 2022 के उपचुनाव में उनके बेटे अमर पासवान ने राजद के टिकट पर जीत हासिल की और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को मजबूती से संभाला। 1967 में स्थापना के बाद से इस सीट पर सबसे ज्यादा 5 बार जीत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के खाते में गई है, जो क्षेत्र में पार्टी के मजबूत आधार को दर्शाता है।
यह सीट एक समय ‘स्विंग सीट’ भी रही है, जहां संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी, जदयू और वीआईपी जैसे दल भी सफल रहे हैं। यह बताता है कि यहां विकास से ज्यादा विरासत और पहचान की राजनीति असर डालती रही है।
बोचहां का चुनावी समीकरण पारंपरिक रूप से दलित मतदाताओं पर केंद्रित रहा है, लेकिन जीत हार का फैसला अन्य समुदायों के वोटों से होता है। यहां यादव, कुशवाहा, पासवान और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। क्षेत्र में जातीय आधार पर वोटिंग का चलन है। राजद का जनाधार यादव-मुस्लिम के साथ-साथ दलितों के एक बड़े तबके पर टिका है, जबकि विरोधी दल इस आधार में सेंध लगाने की कोशिश करते हैं।
बोचहां मुख्य रूप से कृषि आधारित इलाका है, जहां धान, मक्का और सब्जियां प्रमुख फसलें हैं। राजनीतिक विरासत के बावजूद, ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी प्रमुख चुनावी मुद्दा है।
बुनियादी ढांचे की कमी: यहां सड़कें और जल निकासी की स्थिति खराब है, जो मानसून में समस्या पैदा करती है।
अर्थव्यवस्था के मुद्दे: बेरोजगारी और पलायन लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे युवाओं में राजनीतिक परिवर्तन की चाह दिखती है। किसानों को फसल का उचित मूल्य न मिलना और शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाओं की सीमितता भी यहां के गंभीर मुद्दे बने हुए हैं।
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2025 का चुनाव अमर पासवान के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, जहां उन्हें न केवल अपने पिता की विरासत को बचाना है, बल्कि विकास के वादों को पूरा करने के लिए भी मतदाताओं के बीच भरोसा कायम करना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि दलित राजनीति का यह केंद्र किस ओर करवट लेता है।






