
सकरा विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Sakara Assembly Constituency: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की सकरा विधानसभा सीट राजनीति में एक ऐसी पहेली है, जहाँ जीत और हार का फैसला अक्सर बहुत कम मार्जिन से होता है। यह सीट मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और समस्तीपुर तथा वैशाली जैसे महत्वपूर्ण जिलों से सटी हुई है, जो इसे रणनीतिक रूप से खास बनाती है।
साल 2020 का विधानसभा चुनाव सकरा के राजनीतिक इतिहास में एक रोमांचक अध्याय के तौर पर दर्ज है, जहाँ कम अंतर की जीत ने यह साबित कर दिया कि यहाँ का हर वोट कितना निर्णायक है।
सकरा विधानसभा सीट पर 2020 का मुकाबला इतना नजदीकी था कि अंतिम गिनती तक हर किसी की सांसें अटकी हुई थीं। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उम्मीदवार अशोक कुमार चौधरी ने इस मुकाबले में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उमेश कुमार राम को मात दी। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि जीत का अंतर सिर्फ 1,537 वोट था। इस बेहद कम अंतर की जीत ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि आगामी Bihar Assembly Election 2025 में यह सीट एक बार फिर कांटे की टक्कर का केंद्र बनेगी।
सकरा सीट का इतिहास दिखाता है कि यहाँ की जनता किसी एक दल के साथ बंधकर नहीं रहती, बल्कि हर बार नई उम्मीद और नए समीकरणों पर मुहर लगाती है। यह मिजाज बदलती रहती है। साल 2010 के चुनाव में जदयू के सुरेश चंचल ने राजद के लाल बाबू राम को भारी वोटों के अंतर से हराया था। वहीं 2015 के चुनाव में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास थी। उस समय राजद के लाल बाबू राम ने शानदार जीत हासिल की थी, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अर्जुन राम को बड़े अंतर से हराया था।
इसके बाद साल 2020 के चुनाव में यह सीट फिर से जदयू के खाते में गई। इस तरह देखा जाए तो पिछले तीन चुनावों में यह सीट जदयू, राजद और फिर जदयू के खाते में गई है, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि यहाँ एंटी-इनकम्बेंसी (Anti-Incumbency) का प्रभाव काफी मजबूत रहता है।
सकरा विधानसभा क्षेत्र की चुनावी रणनीतियों में जातीय समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। 2020 की वोटर लिस्ट के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 56 हजार मतदाता हैं। यहाँ के वोट बैंक में मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि इन दोनों समुदायों का समर्थन जिस उम्मीदवार को मिलता है, उसकी राह आसान हो जाती है।
अन्य प्रभावशाली समुदाय के वोटरों में राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान मतदाताओं का प्रभाव भी निर्णायक होता है, जो हार-जीत के कम अंतर को तय करते हैं।
आगामी चुनाव में जदयू (NDA) को अपनी सीट बरकरार रखने के लिए यादव-मुस्लिम समीकरण के प्रभाव को कम करने के लिए इन अन्य समुदायों और कुशवाहा वोटों को मजबूती से अपने पाले में लाना होगा, जबकि राजद को एम-वाई (M-Y) समीकरण को पूरी तरह से एकजुट करने की जरूरत होगी।
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सकरा विधानसभा सीट पर बिहार चुनाव 2025 का मुकाबला पिछली बार की तरह ही बेहद रोमांचक और करीबी होने की संभावना है। जदयू के अशोक कुमार चौधरी के सामने यह चुनौती होगी कि वे 1,537 वोटों के बेहद कम अंतर वाली अपनी जीत को एक बड़ी बढ़त में बदलें। वहीं, राजद/कांग्रेस गठबंधन इस सीट पर अपनी वापसी सुनिश्चित करने के लिए जातीय गोलबंदी और एंटी-इनकम्बेंसी को भुनाने की पूरी कोशिश करेगा। मुस्लिम-यादव वोटों और अन्य ओबीसी/दलित समुदायों का रुझान ही Bihar Politics में सकरा के अगले विधायक का फैसला करेगा।






