
साहेबगंज विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Sahebganj Assembly Constituency: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की साहेबगंज विधानसभा सीट राज्य की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक सीटों में से एक मानी जाती है। बाया नदी के किनारे बसा यह इलाका चुनावी राजनीति में हमेशा बदलाव को तवज्जो देने के अपने इतिहास के कारण चर्चा में रहा है।
यह सीट वैशाली लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और इसका राजनीतिक मिजाज किसी एक पार्टी के प्रति स्थिर नहीं रहा है, जिससे आगामी Bihar Assembly Election 2025 में यह एक अत्यंत प्रतिस्पर्धी मुकाबला बनने जा रही है।
साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी, और तब से अब तक यहाँ 17 बार चुनाव हो चुके हैं। इस सीट का इतिहास दलों के बीच सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाता है:
कांग्रेस का शुरुआती वर्चस्व: शुरुआती दशकों में यहाँ कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा, जिसने कुल 7 बार जीत दर्ज की। कांग्रेस की अंतिम जीत 1985 में हुई।
क्षेत्रीय दलों का उदय: इसके बाद जनता दल, जदयू और राजद ने दो-दो बार यह सीट जीती। वहीं, भाकपा, लोक जनशक्ति पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी एक-एक बार जीत हासिल की।
दिलचस्प यह है कि साहेबगंज की जनता ने पिछले दो दशकों में बार-बार बदलाव को तवज्जो दी है, जिससे यहाँ किसी भी विधायक के लिए अपनी सीट बचाना मुश्किल रहा है:
2005 और 2010: जदयू के राजू कुमार सिंह विजयी रहे।
2015: जनता ने राजद के रामविचार राय को मौका दिया।
2020: वीआईपी उम्मीदवार के रूप में राजू कुमार सिंह ने फिर से जीत हासिल की, जिन्होंने राजद के रामविचार राय को हराया।
सबसे बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम यह है कि वर्तमान विधायक राजू कुमार सिंह बाद में भाजपा में शामिल हो गए। तकनीकी रूप से, भाजपा ने इस सीट पर कभी जीत दर्ज नहीं की है (हालांकि भारतीय जनसंघ या अन्य गठबंधन के रूप में सफलता मिली होगी), इसलिए 2025 में राजू कुमार सिंह के जरिए भाजपा का खाता खोलने की बड़ी चुनौती होगी।
आगामी Bihar Assembly Election 2025 में साहेबगंज सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा:
भाजपा (NDA): राजू कुमार सिंह, यहां के वर्तमान विधायक हैं, लेकिन दल-बदल के बाद अपनी साख बचाने की चुनौती काफी कठिन है।
राजद (महागठबंधन): पृथ्वी नाथ राय को राजद के पारंपरिक वोटों का सहारा है, जिसके आधार पर वापसी की कोशिश कर रहे हैं।
जन सुराज पार्टी: ठाकुर हरि किशोर सिंह ने तीसरे मोर्चे के रूप में एंट्री करके चुनाव को त्रिकाणीय बना दिया है। ये राजपूत और भूमिहार वोटों में सेंध लगा सकते हैं, जिससे दोनों दलों को झटका लग सकता है।
साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण चुनाव परिणामों पर सीधा असर डालते हैं। यहाँ राजपूत, यादव, मुस्लिम और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, जो चुनाव परिणामों पर सीधा असर डालते हैं। इसके अलावा वैश्य, निषाद और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के मतदाता भी कई बार निर्णायक साबित हुए हैं।
राजू कुमार सिंह (राजपूत) को भाजपा के समर्थन के साथ राजपूत और भूमिहार वोटों को एकजुट करना होगा, जबकि राजद यादव और मुस्लिम (M-Y) वोटों के साथ अति-पिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की कोशिश करेगा। जन सुराज दोनों प्रमुख गठबंधनों के सवर्ण वोटों में सेंध लगाकर मुकाबला और कठिन बना सकता है।
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साहेबगंज विधानसभा सीट बिहार चुनाव 2025 में एक हाई-वोल्टेज सीट है, जहाँ जनता के बदलाव को तवज्जो देने के इतिहास को तोड़ना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल होगा। भाजपा के राजू कुमार सिंह को दल-बदल के कारण एंटी-इनकम्बेंसी और दलीय निष्ठा दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। राजद की जीत यादव-मुस्लिम समीकरण और एंटी-इनकम्बेंसी पर निर्भर करेगी। यह चुनाव यह तय करेगा कि क्या भाजपा पहली बार साहेबगंज में कमल खिला पाती है या राजद अपनी वापसी सुनिश्चित करता है।






