लालू प्रसाद यादव व असदुद्दीन ओवैसी (डिजाइन फोटो)
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा बनाकर महागठबंधन का खेल बिगाड़ने की कोशिश में जुटी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से पार पाने का रास्ता लालू यादव ने खोज निकाला है। साथ ही यह अब इस सवाल का जवाब भी मिल गया है कि क्यों AIMIM को महागठबंधन में एंट्री नहीं दी गई है।
दरअसल, विधानसभा चुनाव को देखते हुए लालू की अगुवाई वाली आरजेडी अपने कोर वोटर मुसलमानों पर खास ध्यान दे रही है। इस समाज में उसने खासकर अति पिछड़ी मुस्लिम जातियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की रणनीति बनाई है। राजद ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत अति पिछड़े मुस्लिम नेताओं में नेतृत्व उभारना शुरू कर दिया है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, आने वाले समय में संगठन की प्रांतीय और राष्ट्रीय कार्यकारिणी हो या विधानसभा प्रत्याशी का चयन, माना जा रहा है कि इस बार अति पिछड़े मुसलमानों को प्राथमिकता दी जाएगी। राजद की इस रणनीति के पीछे आरजेडी का राजनीतिक गणित है। अनुमान है कि बिहार में मुसलमानों में अति पिछड़ी जातियों की संख्या लगभग 67 प्रतिशत है।
सूत्र बताते हैं कि एआईएमआईएम के अनुरोध को खारिज करने के पीछे आरजेडी का एक विशेष सर्वेक्षण आधार बना। पार्टी ने विभिन्न आधारों पर एक सर्वेक्षण किया है और पाया है कि वक्फ विधेयक के विरोध में राजद-कांग्रेस के जितना ज़ोर किसी और पार्टी ने नहीं दिखाया है। सर्वेक्षण से पता चला है कि मुस्लिम समुदाय एआईएमआईएम को वोट देकर महागठबंधन को कमज़ोर करने के पक्ष में नहीं है।
वहीं, सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ है कि जब भी हिंदू-मुस्लिम का नारा बुलंद होता है, उसका फ़ायदा विपक्ष से ज़्यादा भाजपा को होता है। इसलिए, आरजेडी या कांग्रेस एआईएमआईएम को महागठबंधन में शामिल करके हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं करना चाहती। इसके अलावा भी मुस्लिम मतदाताओं का मूड भांपने के लिए RJD ने कई अन्य अभ्यास भी किए हैं।
इसी रणनीति के तहत लालू की पार्टी ने असदुद्दीन ओवैसी के महागठबंधन में अपनी पार्टी को शामिल करने के अनुरोध को ठुकरा दिया है। RJD ने अपने कोर वोटर मुसलमानों पर भरोसा जताया है। जानकारों का यह भी कहना है कि आरजेडी अपने कोर वोटरों में किसी की हिस्सेदारी स्वीकार नहीं करेगा। इसके लिए उसने अपने कोर मुस्लिम वोटरों में अति पिछड़ी जातियों में अपनी पैठ बढ़ाई है।
मुसलमानों में यह एक ऐसा वर्ग है, जिसके वोटों से ज़्यादातर मुसलमान चुनाव जीतते रहे हैं। जबकि इस वर्ग के प्रतिनिधियों की संख्या इसमें बहुत कम है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि संभव है कि सवर्ण जातियों के मुसलमान बहुत कम दिखें। फ़िलहाल, आरजेडी में ज़्यादातर मुस्लिम नेता मुसलमानों में सवर्ण जातियों से ही ताल्लुक रखते हैं।
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अब जिस तरह से RJD ने हिंदुओं में अति पिछड़े वोटरों को लुभाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए हैं। उसी तरह वह मुस्लिम समुदाय के अति पिछड़े तबके को अपनी ओर आकर्षित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। क्योंकि राज्य में अति पिछड़े वर्ग की 112 जातियों में से 24 जातियाँ मुस्लिम समुदाय में हैं।
फिलहाल तो आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने अपना दांव खेल दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि यह चाल कितनी कामयाब होती है और इसके जरिए उनकी पार्टी मुस्लिम वोटरों को बंटने से रोक पाती है या फिर नहीं!