Ex-showroom and on-road कीमतों में क्या होता है अतंर। (सौ. Design)
नवभारत ऑटोमोबाइल डेस्क: जब भी आप किसी कार, बाइक या स्कूटर का विज्ञापन देखते हैं, तो उसमें बताई गई कीमत उसकी एक्स-शोरूम प्राइस होती है। लेकिन जब आप उसी वाहन को खरीदने के लिए डीलरशिप पर जाते हैं, तो उसकी ऑन-रोड प्राइस अधिक होती है। इसकी वजह यह है कि वाहन की खरीदारी पर कई तरह के टैक्स और अतिरिक्त चार्जेस जोड़े जाते हैं। आइए जानते हैं कि एक्स-शोरूम प्राइस और ऑन-रोड प्राइस में कितना अंतर होता है और इसमें कौन-कौन से टैक्स शामिल होते हैं।
एक्स-शोरूम प्राइस में केवल वाहन की निर्माण लागत, डीलर का प्रॉफिट और गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) शामिल होता है। लेकिन जब इसे सड़क पर चलाने के लिए पंजीकरण, रोड टैक्स और इंश्योरेंस जैसी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं, तब इसकी कीमत बढ़ जाती है। यही अंतिम मूल्य ऑन-रोड प्राइस कहलाता है।
ऑन-रोड प्राइस में अगर ग्राहक एक्स्ट्रा फीचर्स, एक्सेसरीज़ या वारंटी प्लान लेता है, तो यह लागत और अधिक बढ़ सकती है। कई महंगी कारों में यह अंतर लाखों से करोड़ों रुपये तक पहुंच जाता है।
किसी भी नए वाहन को आरटीओ (RTO) से पंजीकृत कराना अनिवार्य होता है। इस प्रक्रिया के तहत वाहन को एक यूनिक नंबर मिलता है, जिसे इस्तेमाल करने के लिए रजिस्ट्रेशन फीस देनी पड़ती है। यह शुल्क राज्य के हिसाब से अलग-अलग होता है।
रोड टैक्स एक बार दिया जाने वाला शुल्क होता है, जो वाहन को सड़कों पर चलाने की अनुमति देता है। यह कर वाहन की एक्स-शोरूम कीमत के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
ग्रीन टैक्स को पर्यावरण टैक्स भी कहा जाता है। यह उन वाहनों पर लगाया जाता है जो प्रदूषण फैलाते हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में 15 साल से पुराने निजी वाहनों और 8 साल से पुराने कॉमर्शियल वाहनों पर यह टैक्स लगाया जाता है।
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टीसीएस एक प्रकार का टैक्स है, जिसे डीलर द्वारा वाहन की खरीद पर लिया जाता है। यह वाहन की एक्स-शोरूम कीमत का 1% होता है।
वाहन की सुरक्षा के लिए बीमा करवाना अनिवार्य है। यह इंश्योरेंस दुर्घटना, चोरी या किसी अन्य नुकसान से बचाने के लिए लिया जाता है। इंश्योरेंस प्लान के अनुसार ऑन-रोड प्राइस में बदलाव हो सकता है।
यदि आप वाहन को लोन पर खरीदते हैं, तो लोन की ब्याज दर आपकी कुल लागत बढ़ा देती है। इसके अलावा, FASTag अनिवार्य होने के कारण, टोल प्लाजा पर इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के लिए वाहन खरीदते समय ही फास्टैग लेना जरूरी होता है, जिससे कुल खर्च और बढ़ जाता है।