
ताइवान-अमेरिका नजदीकी पर भड़का चीन, (डिजाइन फोटो)
Indo Pacific Tension: अमेरिका द्वारा ताइवान के साथ अपने रिश्तों को नई मजबूती देने का निर्णय चीन को नागवार गुजरा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 दिसंबर को एक ऐसे बिल पर हस्ताक्षर किए, जिसने तीनों देशों के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ा दिया है। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का कड़ा विरोध करता है।
ट्रंप द्वारा हस्ताक्षरित यह बिल ‘ताइवान एश्योरेंस इम्प्लिमेंटेशन एक्ट’ है। यह अधिनियम अमेरिकी विदेश विभाग को ताइवान के साथ संबंधों से जुड़ी गाइडलाइंस की हर पांच साल में समीक्षा करने के लिए बाध्य करता है। इस समीक्षा का उद्देश्य ताइवान-अमेरिका रिश्तों को अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाना है। ताइवान ने इस कानून का स्वागत किया और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों की साझेदारी का प्रतीक बताया।
ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय की प्रवक्ता कैरेन कुओ ने कहा कि यह कानून दिखाता है कि अमेरिका ताइवान के साथ संवाद और सहयोग को कितनी अहमियत देता है। उन्होंने इसे लोकतंत्र, आजादी और मानवाधिकारों पर आधारित साझा आदर्शों की पुष्टि बताया।
ताइवान के विदेश मंत्री लिन चिया-लंग ने स्पष्ट किया कि इस समीक्षा प्रक्रिया से ताइवानी अधिकारियों को अमेरिकी संघीय एजेंसियों में आधिकारिक मीटिंग्स में भाग लेने की अनुमति जैसी नई संभावनाएं खुल सकती हैं। हालांकि कानून में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन इस दिशा में अहम बदलाव की उम्मीद की जा रही है।
इधर, चीन ने इस विकासक्रम को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया है। बुधवार को आयोजित नियमित प्रेस ब्रीफिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन अमेरिका और “चीन के ताइवान क्षेत्र” के बीच किसी भी तरह के आधिकारिक संपर्क का कड़ा विरोध करता है। उन्होंने कहा कि ताइवान का मुद्दा चीन के राष्ट्रीय हितों के केंद्र में है और यह चीन-अमेरिका रिश्तों की पहली रेड लाइन है, जिसे पार नहीं किया जाना चाहिए।
चीन ने यह भी चेतावनी दी कि अमेरिका और ताइवान के बीच किसी भी प्रकार के आधिकारिक एक्सचेंज से ‘ताइवान की स्वतंत्रता’ की वकालत करने वाली अलगाववादी ताकतों को गलत संदेश मिलेगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा हो सकता है।
अमेरिका-ताइवान रिश्तों और चीन की प्रतिक्रिया पर उत्पन्न यह तनाव दिखाता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। ट्रंप प्रशासन पहले भी ताइवान को समर्थन दे चुका है। 2021 में उस समय के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अमेरिकी और ताइवानी अधिकारियों के बीच संपर्क पर 1979 से लागू प्रतिबंध को हटा दिया था, जिससे चीन की नाराजगी और बढ़ गई थी।
यह भी पढ़ें:- ‘जब तक मांगें नहीं, तब तक…’, बांग्लादेश में गहराया शिक्षा संकट, देशभर के सभी प्राइमरी स्कूल बंद
वर्तमान स्थिति यह संकेत देती है कि आने वाले समय में अमेरिका-ताइवान संबंध और अधिक मजबूत हो सकते हैं, जबकि चीन ताइवान पर अपने दावे से किसी भी तरह पीछे हटने को तैयार नहीं है। इससे त्रिपक्षीय रिश्तों में तनाव और अधिक बढ़ सकता है।






